Monday 8 February 2021

कहानी - आंंदोलन में शामिल लड़की की




चंचल

(संदीप कुमार)




नसीब कहीं भी जाते या किसी के भी पास बैठते अपनी बेटी चंचल का जिक्र जरूर करते। वो बहुत खुश होकर कहते कि चंचल कभी भी ऊंची आवाज में बात नहीं करती। अगर घर पर कोई भी महमान आता तो उन्हें पता भी नहीं चलता कि घर में कोई लड़की भी है। और गली में खड़ा होना तो उसके वसूलों के खिलाफ है। वह बस अपने काम से ही मतलब रखती है। वह बहुत कम बोलती है और अपने में ही खुश रहती है। 

लेकिन, सच्चाई यह नहीं है। सच्चाई तो यह है कि उससे कभी किसी ने बात ही नहीं की। ओर मान लिया कि वह किसी से बात करना ही नहीं चाहती। वह अकेले में ही खुश है।

चंचल का दिन भी ओर लड़कियों की तरह ही शुरू होता। वह सुबह उठकर पूरे परिवार के लिए चाय बनाती, पूरे घर की साफ सफाई करती और उसके बाद खाना बनाकर झूठे बर्तनों को साफ करती व फटाफट नहा धोकर अपनी बिखरी हुई किताबें बैग में डालती और स्कूल के लिए निकल जाती। कभी-कभी काम करते हुए इतनी देर हो जाती कि वह सुबह का खाना ही नहीं खा पाती। दोपहर को आधी छुट्टी में ही आकर खाना खाती। स्कूल से घर आते ही फिर से घर के कार्यों में मशगूल हो जाती और रात में स्कूल का कार्य करते-करते कब नींद आ जाती कई बार उसे पता ही नहीं चलता। चाहे माहवारी का दर्द हो या फिर कुछ ओर उसकी जिंदगी में कभी आराम नहीं मिलता और उसने इसे ही किस्मत समझकर मान लिया था।

चंचल के भाई, राज ने कॉलेज में जाना शुरू कर दिया और उसे कॉलेज में कुछ ऐसे सहपाठी मिले जो हमेशा अपने सुख दुःख बुलाकर समाज के बारे में बातें करते रहते। उनके सपनों में कभी भी यह नहीं आता कि उन्हें कहां नौकरी करनी है? भविष्य में कैसा मकान चाहिए? उनके सपने भी उनकी किताबों के जैसे थे। उनके पास बैग में कंपीटिशन की जगह प्रेमचंद, गोर्की, अवतार सिंह पाश, यशपाल व भगतसिंह की किताबें और समाज, आवाज, आगाज जैसी पत्रिकाएं रहती। 

उनकी बातों का विषय कभी भी यह नहीं रहा कि किस लड़की ने क्या पहन रखा है? उनकी चर्चा हमेशा यही रहती कि ऐसा समय कैसे आये कि कोई किसी के पहनने, खाने व रंग-रूप को लेकर कमेंट न करे। उनकी बातें हमेशा इस विषय के ईर्द-गिर्द रहती कि सबको शिक्षा क्यों नहीं मिल पाती? क्यों हजारों स्टूडेंट्स हर साल पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं? पूरे कॉलेज में इनके बारे में बातचीत चलती ओर सभी इन्हें पागल कहते। कुछ इन्हें कहते कि ये अपना भविष्य खराब कर रहे हैं। जितने मुंह उतनी बातें। लेकिन ये अपनी मस्ती में मस्त रहते हुए सुंदर भविष्य के सपने देखने में ही मस्त रहते और उसके लिए कुछ न कुछ करते रहते। कॉलेज में बढ़ी हुई फीस के खिलाफ इन दो चार छात्रों ने जब आंदोलन शुरू किया तो काफिला बढ़ता गया और अंततः सरकार को बढ़ी हुई फीसें वापिस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस आंदोलन के बाद आम स्टूडेंट्स में इनकी इज्जत बढ़ गई। पूरे कॉलेज में जो इनके प्रति अवधारणा बनी थी वह बदल गयी। उदाहरण के तौर पर इनका नाम लिया जाने लगा। कॉलेज के कुछ प्रोफेसर भी इन्हें छुपे तौर पर हर तरह की मदद करने के लिए आगे आ गए। खैर, अभी हम वापिस चंचल की कहानी की ओर आते हैं।

कॉलेज के इस छोटे से ग्रुप ने अर्पित को अपना नेता स्वीकार कर लिया। अर्पित, राज के घर पर अक्सर जाता। जब शुरू-शुरू में अर्पित राज के साथ घर पर गया तो चंचल दूर बैठकर उन दोनों की बातचीत बहुत ही ध्यान से सुनती। अक्सर उसकी नजरें किताबों की ओर होती लेकिन कान उन दोनों की बातचीत पर। कई बार वह उनकी बातें सुनने में इतनी मगन हो जाती कि उसे चुल्हे पर रखी रोटी का ध्यान तभी आता जब वह आग में जलना शुरू हो जाती। अर्पित भी घर के सभी सदस्यों के साथ घुलमिलकर बात करता लेकिन चंचल कभी उससे बात नहीं करती। एकदिन अर्पित ने उसे पढ़ने के लिए "आवाज पत्रिका" दी। अर्पित ने चंचल की ओर जैसे ही आवाज पत्रिका बढ़ाई तो वह डर के मारे कांपने लगी। कांपते हाथों से पत्रिका जमीन पर गिर गई। जमीन से पत्रिका उठाकर अर्पित साईकिल की काठी पर रखकर राज के साथ घर से बाहर निकल जाता है। उनके घर से बाहर निकलते ही चंचल पत्रिका को साईकिल से इस तरह उठाती है,जैसे कि वह आग में तपी हुई कोई लौहे की छड़ हो। वह रात को पढ़ने के लिए उसे अपनी किताबों के बीच में छुपाकर रख देती है और अपने घर के कार्यों में लग जाती है। 

दो दिन बाद वह पत्रिका को पढ़ने के लिए खोलती है और वह यह पढ़कर हैरान हो जाती है, "औरतें भी इंसान हैं। हम समाज में जो महिला व पुरूष के बीच भेदभाव देखते हैं वह प्रकृति ने नहीं हमने ही बनाया है।" आगे वह पढ़ती है कि किसी का गरीब होना उसकी किस्मत के कारण नहीं है बल्कि उसकी मेहनत की लूट के कारण है। और ये बातें उसे समझ नहीं आयी। वह पिछले कुछ सालों से संतोषी मां व शिवजी के व्रत रखती थी। इसलिये उसे प्रकृति वाली बात समझ में नहीं आयी। वह बचपन से ही सुनती आयी थी कि पैदा होते ही "बेमाता" सबके लेख (किस्मत) लिख देती है। वह चिंतित हो जाती है और जानना चाहती है कि मेहनत की लूट कोई कैसे करता है? लेकिन, यह सब किससे पूछे? अपने भाई राज से तो उसने कभी बात की ही नहीं। और आज भी वह अपने भाई से बात करने की हिम्मत नहीं कर पा रही है जबकि आज वह देख पा रही है कि राज पहले की तरह आदेश नहीं देता है। न ही वह पहले की तरह गुस्सा करता है। बल्कि अब वह बहुत से कार्य खुद करता है। वह अब कभी भी किसी से अपने कपड़ों व जूतों के बारे में नहीं पूछता है कि कहां पर रखें हैं। और खाना भी वह स्वयं ही डाल कर खा लेता है। आज से पहले चंचल ने कभी भी इस तरह नहीं सोचा था। इस सबके बावजूद भी चंचल अपने भाई से बात करने की हिम्मत नहीं कर पायी। 

कुछ दिनों के बाद अर्पित घर पर पहुंचता है और घर पर उसे चंचल दिखाई देती है। वह चंचल से पूछता है कि राज कहां पर है?

चंचल, "वह कहीं बाहर गया हुआ है।"

अर्पित, "अंकल-आंटी भी दिखाई नहीं दे रहे हैं?"

चंचल, "वो शहर गए हैं। घर पर कोई नहीं है?"

अर्पित को चंचल के साथ बात करने का सूत्र मिल जाता है। वह वहीं चंचल के पास आंगन में खाली पड़ी खाट पर बैठ जाता है और बातचीत शुरू कर देता है।

अर्पित, "चंचल आप घर की सदस्य नहीं हो क्या?"

चंचल, "भाई, आप ऐसा क्यों कह रहे हो? मैं घर की सदस्य हूँ।"

अर्पित, "फिर आप ऐसा क्यों कह रही हो कि घर पर कोई नहीं है?"

इस बात का चंचल के पास कोई जवाब नहीं था। वह शर्म महसूस करती है और अपना सर झुका लेती है। फिर वहां पर एकदम से चुप्पी छा जाती है। इस चुप्पी को तोड़ते हुए अर्पित, चंचल से पूछता है कि आपने आवाज पत्रिका पढ़ी? वह उसी के बारे में बातचीत करना चाह रही थी लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी शुरू नहीं कर पा रही थी। वह अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रही थी कि अब उसके मनपसंद विषय पर बातचीत होगी। उसके दिमाग में सवालों के बंवडर उठ रहे थे लेकिन उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि कहां से शुरू करे? काफी जद्दोजहद के बाद उसने बताया कि अभी तक पत्रिका के तीन चार लेख ही पढ़े हैं। और फिर एकदम से चुप हो गई।

अर्पित, "कोई बात नहीं आप धीरे धीरे पूरी पत्रिका जरूर पढ़ें। क्या आप बता सकती हैं कि आपने अभी तक कौन-कौन से तीन चार लेख पढ़े हैं?"

चंचल अब धीरे धीरे बोलना शुरू करती है। वह बताती है कि मुझे यह तो याद नहीं है कि कौन-कौन से लेख पढ़े हैं। लेकिन, मुझे यह समझ में नहीं आया कि महिला और पुरूष बराबर कैसे हैं? महिलाएं तो कमजोर होती हैं। वो पुरूषों के बराबर कार्य नहीं कर सकती। परंतु यहां लिखा है कि महिलाएं बराबर होती हैं। अब वह धाराप्रवाह बोलती जा रही थी और अर्पित धैर्य के साथ एक-एक शब्द सुन रहा था। बीच-बीच में वह देख भी रही थी कि अर्पित उसकी बातें सुन रहा है या नहीं? कहीं वह उसका मजाक तो नहीं कर रहा? लेकिन वह अर्पित के चेहरे के हावभाव देखकर संतुष्ट हो जाती है कि उसकी बातें गंभीरता से सुनी जा रहा है। उसे इग्नोर नहीं किया जा रहा है। इससे चंचल का हौंसला बढ़ता है और वह आगे अपनी बात जारी रखते हुए पूछती है कि इस दुनिया में अमीर-गरीब तो सब भगवान की देन है। इसमें ये मेहनत की लूट वाली बात समझ में नहीं आयी? जिस लड़की के बारे में यह सोचा जाता था कि वह किसी से बात करना पसंद नहीं करती, उसे चुप रहना अच्छा लगता है। आज वह बेहिचक अपने सवाल रख रही थी और वो भी उस अजनबी के सामने जो घर पर कभी-कभार ही आता है। यह अलग बात है कि उसे अपनी बात कहने के लिए एक-एक शब्द ढूंढना पड़ रहा था लेकिन उसके मन में आज डर बिल्कुल नहीं था। ये सब बातें कहने के बाद वह अपने आपको बहुत हल्का महसूस कर रही थी। 

अब अर्पित ने अपनी बात कहनी शुरू की तो उसके कान उनकी बातें सुनने में इस तरह मसगूल थे कि एक पत्ते की सरसराहट भी वह बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। गली में कुत्ता भौंकता है, तो वह तुरंत लाठी लेकर जाती है और कुत्ते को भगाकर वापिस वहीं बैठकर कहती है अब बताओ भाई।

अर्पित ने कहा कि मैं ये चाहता हूँ आप मेरे साथ बातचीत में शामिल हों तो आपको ये सब चीजें अच्छे से समझ में आएंगी। चंचल इस बात पर मूक सहमति दे देती है।

अर्पित, "हमने नौवीं कक्षा की विज्ञान में पढ़ा है कि लड़का और लड़की किस तरह से पैदा होते हैं। अगर XX का मेल होता है तो लड़की और अगर XY का मेल होता है तो लड़का पैदा होता है।"

चंचल, "हां, पढ़ा तो है।"

अर्पित, "अगर किसी घर में बच्चा पैदा हुआ है और उसे तोलिये में लपेट रखा है तो क्या हम बता सकते हैं कि वह लड़का है या लड़की?"

चंचल, "नहीं, बिना तोलिया हटाये ये हम कैसे बता सकते हैं?"

अर्पित ने बताया कि जब हम बिना तोलिया हटाये ये सब नहीं बता सकते तो इसका मतलब क्या है?

चंचल कुछ देर सोचती है और फिर कहती है, "इसका मतलब यही है कि दोनों बराबर हैं ।"

बिल्कुल इसका मतलब यही है, अर्पित ने यह कहते हुए बात आगे बढाई। इस तरह हम देखते हैं कि जब बच्चा पैदा होता है तो वह लड़का होता है या लड़की। उसके रंग, रूप व चेहरे को देखकर हम नहीं बता सकते कि वह क्या है? इसके बाद ही अगली कार्यवाही शुरू होती है कि अगर लड़का है तो घर में थाली बजाई जाती है, गीत गाए जाते हैं और भी बहुत कुछ होता है और लड़की के जन्म पर सभी घरों में मातम छा जाता है। इस तरह हम देखते हैं कि ये भेदभाव हमने किया है जोकि शुरू से नहीं है। अगर शुरू से होता तो पूरी दुनिया में लड़की के पैदा होने पर मातम होना था लेकिन ऐसा नहीं है। बहुत से समुदाय ऐसे हैं जहां पर लड़के व लड़की के जन्म पर बराबर की खुशीयां मनाई जाती हैं। अर्पित थोड़ा रूकता है तो चंचल बोल उठती है, "भाई, यह तो आप बिल्कुल सच कह रहे हो। इस तरह से तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। और स्कूल में भी कभी ऐसे नहीं बताया गया। मुझे आज भी अच्छी तरह याद है कि जब विज्ञान में बच्चे कैसे पैदा होते हैं? यह पाठ आया तो राजेंद्र जी ने हमें पढ़ाया ही नहीं। उन्होंने कहा कि घर पर जाकर पढ़ लेना।"

हां, आप बिल्कुल सही कह रही हो। हमारे स्कूलों में शिक्षा सिर्फ इसलिए दी जा रही है कि हम ज्यादा से ज्यादा नंबर कैसे लेकर आएं?

चंचल तुरंत बोल उठती है, "शिक्षा नंबरों के लिए ही तो दी जाती है। नंबर आएंगे तो नौकरी मिलेगी।"

अर्पित फिर से अपनी बात शुरू करते हुए कहता है, "ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि यहां पर शिक्षा को नंबरों से जोड़ दिया गया है। नौकरी का सिर्फ नंबरों से कोई मेल-मिलाप नहीं करना चाहिए। उसके और भी कई पैमाने होने चाहिएं जोकि नहीं हैं। शिक्षा केवल नौकरी के लिए नहीं होनी चाहिये, शिक्षा जिंदगी कैसे जिएं? समाज को और ज्यादा बेहतर कैसे बनाएं? इसके लिए होनी चाहिये जोकि नहीं है। अभी मैं आपके अगले सवाल का जवाब भी दे देता हूँ। आप परेशान तो नहीं हो रही?"

नहीं, चंचल ने जवाब दिया।

"अभी हमने शिक्षा को लेकर बातचीत की। एक बच्चा उस घर में पैदा होता है, जिस घर में दो वक्त की रोटियों का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से होता हो और दूसरा बच्चा उस घर में पैदा होता है जिस घर में प्रत्येक कार्य नौकर करते हैं और वह पैदा होते ही करोड़ों रूपये का मालिक होता है। यह हम पहले ही बात कर आएं हैं कि बच्चे का जन्म अंडाणुओं व शुक्राणुओं के मेल से होता है भगवान की मर्जी से नहीं। अब आप बताओ कि आगे बढ़ने के ज्यादा मौके किसे मिलेंगे?" - अर्पित, चंचल से पूछता है।

"भाई, जिसके पास पैसा होगा ज्यादा मौके तो उसे ही मिलेंगे" - चंचल जवाब देती है।

अर्पित, "शारीरिक मेहनत कौन करता है?"

चंचल, "गरीब आदमी"

अर्पित, "अमीर आदमी क्या करता है?"

चंचल, "आदेश देता है। गरीबों को गाली देता है, उनके साथ मारपीट करता है।"

अर्पित, "भूख से कौन मरता है?"

चंचल, "जो खून-पसीना एक करता है।"

अर्पित, "रूपये, सौहरत, सुख सुविधाएं किसे मिलनी चाहियें?"

चंचल, "जो खून पसीना एक करता है।"

अर्पित, "मिलती किसे हैं?"

चंचल, "जो आदेश देता है?"

अर्पित, "क्यों?"

चंचल, "क्योंकि वो मेहनत को लूटता है। और मेहनत को लूट सके इसके लिए वह मेहनत करने वालों को गालियां देता है, उनके साथ मारपीट करता है। मैंने अपने ही पड़ोस में देखा है कि गांव के सरपंच ने मनरेगा में कार्य करने वाले लोगों को मजदूरी नहीं दी। जब वो मजदूर सरपंच की रिपोर्ट दर्ज करवाने के लिए थाने गए तो उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की उल्टे उन्हें गालियां देकर भगा दिया गया। फिर उन लोगों को कहते सुना है कि हमारी मजदूरी के रूपये सिर्फ सरपंच ने ही नहीं खाए हैं ये रूपये बहुत ऊपर तक बंटे हैं सरपंच के हाथ तो कुछ ही रूपये लगे हैं।"

चंचल अपने सवालों के जवाब खुद ही दे रही थी। जब उसे इस बात का अहसास हुआ तो वह आश्चर्यचकित रह गई।

अर्पित आगे कुछ बात करता इतने में राज घर का दरवाजा खोलकर अंदर आ जाता है। अर्पित, राज से कहता है कि आगे से मीटिंग में बहन को भी साथ लेकर आया करो और घर पर भी इनसे बातचीत किया करो। 

उसके बाद चंचल अपने भाई के साथ मीटिंगों में शामिल होने लगी ओर अगले साल स्कूली शिक्षा खत्म करके कॉलेज में दाखिला ले लिया। अपनी छात्रों की यूनियन में वह एक बेहतरीन वक्ता बन गई। ऐसा कोई भी प्रदर्शन व प्रोग्राम नहीं था जिसमें चंचल युवाओं में जोश न भरती हो। चंचल के साथी बताते हैं कि आजकल चंचल अपने साथियों के साथ गांव-गांव घूमकर तीनों कृषि बिलों का विरोध कर रही है। जिसके कारण उसे अलग अलग जगह से धमकी भरे फोन आते हैं। चंचल है कि उन धमकियों को एक कान से सुनती है और दूसरे कान से निकालते हुए जोर से महिला, मजदूर, छात्र, किसान एकता का नारा लगाते हुए अपनी ही धुन में आजादी का गीत शुरू कर देती है। उदास दिलों में अपने भाषणों से जोश पैदा कर रही है तभी तो हजारों की संख्या में महिलाएं आंदोलन में शामिल हो रही हैं।

चंचल के दोस्त ये भी बताते हैं कि हरियाणा में सरकार द्वारा जो बैरिकेडिंंग की गई थी उसे तोड़ते हुए चंचल सिंघु बॉर्डर तक पहुंची और पूरे होश व जोश के साथ अगली कतार में खड़ी रही।

खैर, मैं तो हजारों चंचल देख रहा हूँ जिन्होंने अपने विचारों के लिए हर उस शख्स से बगावत की है जो भी उनके रास्ते में रूकावट बनकर खड़ा हुआ है, चाहे वो उसका बाप ही क्यों न हो। समय उन सब चंचलों की कहानियां जरूर लिखेगा।