Saturday, 13 April 2024

सुनो, ऐ हुक्मरानों

 सुनो, ऐ हुक्मरानों


- सम्राट 



सुनो, ऐ हुक्मरानों

हमें पता है सबकुछ है तुम्हारे पास

धन, दौलत, अखबार, मीडिया चैनल

शानो-शौकत, हथियार, गोला-बारूद, तोपें

और मुस्तैद सिपाहियों की विशाल फौज

जो एक ही झटके में पैरों तले रौंद सकती है 

तमाम किसानों, मजदूरों के आंदोलनों को

दलितों, अल्पसंख्यकों व आदिवासियों को भी

फिर क्या कमी है तुम्हारे पास 

कौन रोक सकता है तुम्हारे विजयरथ को



और हम

क्या है हमारे पास 

हम निहत्थे, बेबस, लाचार 

कैसे कर सकते हैं तुम्हारा सामना

हमारे पास तो कुछ भी नहीं है

शायद कुछ भी नहीं

सिवाय प्रकृति के शाश्वत नियमों के।


प्रकृति के वो शाश्वत नियम 

जिन्होंने रोम जैसी हुकूमत को भी

इतिहास बना दिया 

जिसके सामने न सिकंदर की चली


न अकबर की

और जिनका सूरज कभी अस्त नहीं होता था 

उन्हें भी अपने घूटने टेकने पड़े।


प्रकृति के स्वाभाविक गति के नियम

जो देते हैं जन्म परिवर्तन को, बदलाव को

जो मानव समाज में पैदा कर देते हैं हलचल

और जन्म देते हैं 

विद्रोहों को, बगावतों को, क्रांतियों को

जो नाश कर देते हैं पूराने का

सृजन करते हैं नये का

पहले से बेहतर का

सुनो ऐ हुक्मरानों 

तुम भी इन नियमों से परे नहीं हो।