प्यारे पाठकों हम लंबे समय के बाद फिर से "अभियान पत्रिका" के ब्लॉग को शुरू कर रहे हैं। और उम्मीद करते हैं कि आप ब्लॉग के लिए लेख, कविता, कहानी, नाटक, गजल, रागनी, पुस्तक समीक्षा व फिल्म समीक्षा जरूर लिखेंगे। आप पाठकों के सहयोग के बिना हम पत्रिका व ब्लॉग को निरंतरता में जारी रखने में असमर्थ हैं।
प्रस्तुत कविता "अभियान" के नये अंक-112 में प्रकाशित हुई है।
बेटियों ने दरवाजे क्यों कस लिए
मुकेश
मेरी बेटी दुनिया भर के
लोकतंत्र के बारे में पढ़ती है
विश्वविद्यालय में
लोकतंत्र के विकास व इतिहास में
खास रुचि है उसकी
पर जो दरवाजे की सांकल हम
या तो खुली ही रखते थे
या लापरवाही से अटका भर देते थे
वो उस कुंडी को जोर से कस लेती है
अकेली होते ही
और रात सोने से पहले उसे जरूर
जाँचती है अच्छी तरह
मैं सोचती हूँ
ज़्यूं-ज़्यूं लोकतंत्र जवान हुआ
मेरे देश में
तो बेटियों ने दरवाजे क्यों कस लिए?
No comments:
Post a Comment