किसान आंदोलन में जो मांग उठाना जरूरी है
(संदीप कुमार)
(स्वामीनाथन आयोग ने कहा है कि वर्तमान ग्रामीण संकट का एक प्रमुख कारण भूमि सुधार नहीं करना है। किसान संगठनों को इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।)
किसान आंदोलन अपने उफान पर है। प्रत्येक दिन किसानों में उत्साह का संचार करने के लिए किसान नेता नयी-नयी गतिविधियों का ऐलान कर रहे हैं और उन्हें जमीनी स्तर पर भी लागू कर रहे हैं। आंदोलन के नेताओं ने मंचो से व सरकार के साथ बातचीत में स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करने की मांग को मजबूती के साथ रखा है। लेकिन, पूरी रिपोर्ट पर नहीं, बस रिपोर्ट के एक हिस्से पर ही जोर शोर से आवाज बुलंद की जा रही है और वह है फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)। जबकि स्वामीनाथन आयोग ने कहा है कि वर्तमान ग्रामीण संकट का एक प्रमुख कारण भूमि सुधार नहीं करना है। किसान संगठनों को इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इसलिये भूमिहीनों व शेड्यूल कास्ट के लोगों को कम से कम जोतने योग्य एक एकड़ जमीन प्राप्त हो यह मांग भी प्रमुखता से उठानी चाहिए। जिससे अपने परिवार के लिए भोजन व पशुओं का चारा जुटाया जा सके। अगर सभी परिवारों को एक-एक एकड़ जोतने योग्य भूमि का वितरण किया जाता है तो इससे लोग अमीर नहीं होंगे बस अपने गुजारे लायक कुछ प्राप्त कर पाएंगे। और जातीय बंधन ढिले होंगे तथा सामाजिक बंदी जैसे सामंती निर्णय भी प्रभावहीन होंगे। लोगों में आत्मसम्मान की भावना बढ़ेगी जिससे मानवीय गरिमा के साथ जिंदगी जिने का अहसास बढ़ेगा। उनकी जिंदगी बेहतर हो इसके लिए कुछ और ज्यादा बेहतर रोजगार तलाशने होंगे।
लेकिन, वर्तमान किसान आंदोलन का नेतृत्व बड़े किसानों व आढतियों के समर्थन से आगे बढ़ रहा है जो अपने वर्गीय चरित्र के हिसाब से जमीन वितरण के सवाल को नहीं उठा रहा है। और यही सबसे बड़ा कारण है कि शेड्यूल कास्ट खुलकर इन जनविरोधी कानूनों की खिलाफत में शामिल नहीं हो पा रही हैं। जमीन की मांग को उठाने की जिम्मेदारी उन किसान नेताओं, छात्रों, लेखकों, पत्रकारों की बनती है जो भारत में जातीय व्यवस्था को समझते हैं और उसे सभ्य समाज में कलंक की तरह देखते हैं। और अम्बेडकरवादी व दलित संगठनों का भी कर्तव्य बनता है कि वर्तमान किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए, भूमिहीन वर्ग की जमीन की मांगों को उठाएं ताकि आंदोलन को एक सही दिशा दी जा सके और आगे की ओर एक कदम बढ़ा सकें।
आज हम सबका कर्तव्य बनता है कि हम अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए शेड्यूल कास्ट में जाएं और उन्हें "तीन कृषि कानून विरोधी" किसान आंदोलन में अपनी जमीन की मांग के साथ शामिल होने का आह्वान करें। जबतक हम सभी वर्गों व जातियों को इस जनांदोलन के साथ नहीं जोड़ पाएंगे तबतक केंद्र सरकार को अपने जनविरोधी निर्णयों को वापिस लेने के लिए भी बाध्य नहीं कर पाएंगे।
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