ऐ! नए साल
(संदीप कुमार)
ऐ! नए साल
पिछले साल का हमने स्वागत किया था
शाहिन बाग आंदोलन में उठते नारों से
इस बार हम फिर से स्वागत कर रहे हैं
किसानों की बुलंद आवाज के साथ।
ऐ! नए साल
हमने, बीते साल खोए हैं अपने
चालीस से ज्यादा किसान साथी
जिनकी कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाएगी
उनके लहू का रंग
हम सफेद नहीं होने देंगे।
ऐ! नए साल
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक लहू का आखिरी कतरा
हमारी रगो में दौड़ता रहेगा
हम इसलिये भी लड़ेंगे
कि आने वाली पीढियां
गर्व से कह सकें
"हमारे पूर्वजों ने
तानाशाह की आंखों में आंखें डालकर
सीधे-सीधे अपनी बातें कही
और तानाशाह के हर आदेश को
मानने से इनकार कर दिया।"
ऐ! नए साल
हम तो शांति से जीना चाहते हैं
हम बस यही चाहते हैं कि
कोई हमारे श्रम को न चुराए
हम चाहते हैं हमारे चेहरे देखकर
बच्चे चिंता की जगह, सिर्फ मुस्कुराएं
और जबतक हमारी मेहनत का पाई पाई
हमें नहीं लौटाया जाएगा
तबतक ये जंग जारी रहेगी।
ऐ! नए साल
आगाह करो तानाशाह को
ये शांति प्रिय जंग
कब अपने बचाव में हथियार उठा लेगी
कहा नहीं जा सकता
यह भी तय नहीं है कि कब ये जंग
खेत खलिहानों से होते हुए
जहर उगलती फैक्ट्रियों तक पहुंच जाएगी
और ये भी अंधेरे में है
कब ये नेतृत्व किसान-मजदूरों का
सांझा नेतृत्व हो जाएगा।
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