Wednesday 16 December 2020

किसान आंदोलन कविताएं-2

 1. किसान 

(गौहर रजा)




तुम किसानों को सड़कों पे ले आए हो 
अब ये सैलाब हैं 
और सैलाब तिनकों से रुकते नहीं 

ये जो सड़कों पे हैं 
ख़ुदकशी का चलन छोड़ कर आए हैं 
बेड़ियां पाओं की तोड़ कर आए हैं 
सोंधी ख़ुशबू की सब ने क़सम खाई है 
और खेतों से वादा किया है के अब 
जीत होगी तभी लौट कर आएंगे 

अब जो आ ही गए हैं तो यह भी सुनो 
झूठे वादों से ये टलने वाले नहीं 

तुम से पहले भी जाबिर कई आए थे 
तुम से पहले भी शातिर कई आए थे 
तुम से पहले भी ताजिर कई आए थे 
तुम से पहले भी रहज़न कई आए थे 
जिन की कोशिश रही 
सारे खेतों का कुंदन, बिना दाम के 
अपने आकाओं के नाम गिरवी रखें 

उन की क़िस्मत में भी हार ही हार थी 
और तुम्हारा मुक़द्दर भी बस हार है 

तुम जो गद्दी पे बैठे, ख़ुदा बन गए 
तुम ने सोचा के तुम आज भगवान हो 
तुम को किस ने दिया था ये हक़, 
ख़ून से सब की क़िस्मत लिखो, और लिखते रहो 

गर ज़मीं पर ख़ुदा है, कहीं भी कोई 
तो वो दहक़ान है,
है वही देवता, वो ही भगवान है 

और वही देवता,
अपने खेतों के मंदिर की दहलीज़ को छोड़ कर 
आज सड़कों पे है 
सर-ब-कफ़, अपने हाथों में परचम लिए
सारी तहज़ीब-ए-इंसान का वारिस है जो 
आज सड़कों पे है 

हाकिमों जान लो। तानाशाहों सुनो 
अपनी क़िस्मत लिखेगा वो सड़कों पे अब 

काले क़ानून का जो कफ़न लाए हो 
धज्जियाँ उस की बिखरी हैं चारों तरफ़ 
इन्हीं टुकड़ों को रंग कर धनक रंग में 
आने वाले ज़माने का इतिहास भी 
शाहराहों पे ही अब लिखा जाएगा।

तुम किसानों को सड़कों पे ले आए हो 
अब ये सैलाब हैं 
और सैलाब तिनकों से रुकते नहीं 

2. मैं उनकी कविता होना चाहती हूँ

(रंजीत वर्मा)


वह आज फिर सिंघु बॉर्डर जाने की 
ज़िद पर अड़ी थी
कल जब वह लौटी थी
तो पाँव में पुराना दर्द लेकर लौटी थी
बावजूद इसके वह आज फिर
सिंघु बॉर्डर जाने को खड़ी थी
वह अंतिम छोर तक जाना चाहती थी
जहाँ घंटों चलने के बाद भी वह
कल नहीं पहुंच पाई थी
जब लौटी थी तो बेहाल हो चुकी थी
तभी उसने ठान लिया था कि 
कल वह फिर जाएगी
और इस बार चाहे जो हो
अंतिम छोर तक जाएगी

उसे नहीं मालूम था
कि कल वह जिस अंतिम छोर तक नहीं जा सकी थी
वह अंतिम छोर आज
आठ किलोमीटर और दूर चला गया है
और आज जब वह वहाँ पहुंचने को चलेगी 
तब तक वह अंतिम छोर 
हो सकता है कि
भगत सिंह के फांसी के फंदे को चूमता
उसके आगे निकल जाए
बॉर्डर की उस रेखा के पार निकल जाए
जो हिंदू को मुस्लिम को सिख को ईसाई को
एक-दूसरे से अलग करती है

पति ने समझाया कि अब असंभव है तुम्हारे लिए
अंतिम छोर देख पाना
उसका अंत अब कहीं नहीं है

उसने कहा जहाँ थक जाऊंगी
वहाँ मुझे बैठा देना
जहाँ आसपास कविताएं पढ़ी जा रही हो
गीत गाए जा रहे हों
जहाँ लोग अनशन में बैठे हों
वहीं मुझे भी बैठा देना
मैं उनके बीच उनकी कविता होना चाहती हूँ
उनका झूमता नाचता गीत होना चाहती हूँ
मैं उनकी भूख की आग होना चाहती हूँ
तुम अंतिम छोर देखकर आना
और मुझे पूरा हाल ठीक-ठीक बताना
मैं वहाँ सबसे पीछे खड़ी होकर उन्हें देखना चाहती हूँ

तुम कुछ सुन रहे हो हुक्मरान
समझ रहे हो कुछ
क्या कह रही है वह
और तुम सोचते हो कि
गोलमेज पर तुम किसान का हल निकाल लोगे
अपने कक्ष के गोलमेज पर तो तुम 
उनका हाल भी नहीं जान सकते
हल क्या निकालोगे
जाना होगा तुम्हें सिंघु बॉर्डर के अंतिम छोर पर खड़े
किसान तक
एक स्त्री की चिंता में वह कैसा दिखता है
पहले तुम्हें यह जानना होगा
फिर उसके बाद ही हल निकालने की सोचना।

3. धर्मवीर सिंह

विश्व का सबसे बड़ा साम्राज्य
विश्व के सबसे बड़े खेत से 
ज्यादा बड़ा नहीं हो सकता। 

इतिहास का कोई भी 
सम्राट 
अपने युग के किसान से 
ज्यादा जरूरी नहीं हो सकता।। 

4. देवेन्द्र सिंह

नीरो ने दीयों की आग से सब्र किया
शहर के भट्ठी हो जाने को
सुलगाया है उसने जो
चिंगारी इन्हीं दीयों के भीतर से हो
किसान से खालिस्तान
फिर हिन्दू
फिर सिख
फिर ज़ात
फिर सरहद
अनेक दरारों से होती
दहका देगी
मुल्क को
एक बार फिर
दंगो में,

चैन से फिर वो
बंसी बजाएगा या
सुनाएगा मन की बात
यह उसके
आका 
मार्केटिंग एजेंसियों से मिल
तय कर देंगे।

5. ललकार

( हरभगवान चावला )

क्या यह ज़रूरी है
कि ढोरों के बीच रह रहा आदमी
ख़ुद ढोर हो जाए?
यह भी ज़रूरी नहीं
कि मिट्टी जोतता आदमी
ख़ुद मिट्टी हो जाए
या कँटीली झाड़ियों को काटते हुए
आदमी की देह पर काँटे उग आएँ
किसान आदमी ही होता है
तुम्हारी तरह हाड़-मांस से बना
उसे भी भूख लगती है
पेट पर लात पड़ती है
तो उसे भी गुस्सा आता है
तुम कहते हो
किसान आसमानी बातें करता है
वह जानता नहीं कि
जिन्हें वह ललकार रहा है
वे बहुत ऊँचे लोग हैं
वह अच्छी तरह जानता है
शत्रु को पहचानता है
वह इन्सानियत को मानता है
पर साँपों का फन कुचलना जानता है
तुम भी यह जान लो-
इमारत कितनी भी ऊँची हो
आसमान से नीची ही रहती है।

6. तैयारी पूरी हो चुकी है
( सुशील मानव )

नहीं, उन्हें तुम नहीं 
तुम्हारे खेत चाहिए 
वो तो चाहते ही हैं 
कि छोड़ दो तुम घाटे का सौदा 
ताकि वो इसमें मुनाफा कमा सकें 
उनका लक्ष्य ही है अनब्रांड 
फल,सब्जी और अनाज से हमें मुक्त करना 
वैसे जैसे पानी की ब्रांडिंग की उन्होंने 
वैसे जैसे चाय की ब्रांडिंग की उन्होंने 
वैसे जैसे कपड़े की ब्रांडिंग की उन्होंने और गायब कर दिये 
हमारे गली मोहल्लों से टेलर 
वैसे ही अनाज की ब्रांडिंग करने के लिए 
वो गायब कर देंगे एक रोज तुम्हें भी, 
ओ किसानों!
ताकि हर थाली में परोस सकें वो 
पतंजलि, रिलायंस और अडानी 
विल्मार के दाल,चावल और रोटी 
उनकी तैयारी पूरी हो चुकी है 
तुम्हें गाँव से खींचकर शहर लाने की।

ठीक बुआई से पहले नोटबंदी ऐसी ही एक साजिश थी 
जानबूझकर रखा जाएगा न्यूनतम 
तुम्हारे फसलों का समर्थन मूल्य 
समय से नहीं किया जाएगा तुम्हें 
तुम्हारी फसलों का भुगतान 
गायब कर दिए जाएँगे बाजार से उर्वरक,कीटनाशक और बीज 
ऐन बुआई से पहले 
जीएम बीज एक ऐसी ही साजिश थी 
कि बोओगे उम्मीद और उगेगें आँसू 
जहाँ बैंक तुम्हें आसानी से दे देंगे कर्ज 
वहाँ तुम्हारे खेतों की नीलामी का जिम्मा बैंकों के हाथ होगा 
जहाँ बैंक नहीं देंगे कर्ज वहाँ अडानी,अंबानी के हाथों
तुम्हारे खेतों की नीलामी का जिम्मा 
गाँव के सेठों,साहूकारों , दबंगों का होगा 
खरीद लिए गए हैं सारे संस्थान 
खरीद ली गई हैं वोटिंग मशीनें 
अब कई वर्षों तक नहीं बदलेंगी सरकार 
सबसे बड़े हत्यारे को दे दिया गया है टेंडर 
खेत और खलिहान खाली कराने का 
जबकि एवज में खोल दी गई है लूट की कमाई 
बड़े हत्यारे के नीचे कई मझोले हत्यारे 
मझोलों के नीचे छोटे हत्यारे कर दिए गए हैं तैनात 
हत्याओं का न्यायीकरण कर दिया जाएगा 
प्रतिरोध करने वाले किसान 
असमाजिक तत्व कहकर मारा जाएगा 
ठीक वैसे ही जैसे मारा जाता है 
प्रतिरोध करने वाले आदिवासियों को नक्सली बताकर 
तुम्हारे शान्तिप्रद प्रतिरोध को 
विपक्ष की साजिश बताकर 
गुमराह कर दिया जाएगा 
बड़े जन समूहों के समाज को 
ताकि समाज में न उपजे तुम्हारे प्रति समर्थन का भावबोध 
बिल्कुल वैसे ही जैसे वामपंथियों की साजिश बताने पर नहीं उपजता है 
तुम्हारे मन में सहानुभूति 
और समर्थन का भावबोध 
शांतिप्रद आदिवासी आंदोलनों के प्रति
विपक्ष की मरम्मत के लिए ही 
खोले व बनाए गए हैं 
कई हिंदू सेना व प्रकोष्ठ 
जिसमें भर्ती किए गए हैं किराए के बाउंसर 
'विपक्ष' दरअसल कोड है उनका 
विपक्ष- मुक्त माने प्रतिरोध मुक्त 
तो कौन है उनका असली विपक्ष 
दरअसल किसान और आदिवासी ही उनका मुख्य विपक्ष है 
जिसके पास जमीन और जंगल है 
उन्हें हमारी जमीन चाहिए 
उन्हें हमारे जंगल चाहिए 
आदिवासियों ने तो कब का शुरू कर दिया है अपना संघर्ष 
अब बारी हमारी, हम किसानों की है 
संकट अब हमारे अस्तित्व का है 
उनकी तैयारी पूरी हो चुकी है
अब करो या मरो 
मरो या करो।

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