Monday 8 June 2020

राजनीति

पहली प्रेगनेंसी!
जीवन में सबकुछ बदल रहा होता है। देह के भीतर एक नए जीवन के धड़कने का अहसास। अपनी नैसर्गिक रचना को जन्म देने की तैयारी का अहसास। जीवन में दूर तक देखने की तैयारी। तीसरा-चौथा महीना, जब पेट पर हाथ रखो तो ऐसा लगता है कि दिल सीने से सरक कर नाभि के पास आ गया है। नाभिनाल से जुड़े नए जीवन में धड़कन शुरू हो जाती है।
इसके साथ ही कितनी भावनात्मक उथल-पुथल, हार्मोनल उलट-फेर। मुंह के सारे स्वाद बदल जाते हैं। धनिए-पुधीने की गंध से उबकाई आने लगती है। कुछ ऐसा खाने को मन करता है जो कभी न खाया हो। सबसे मनपसंद खाने की थाली को देख कर फेंक देने का मन करता है।
इस नाजुक समय में देश में एक विश्वविद्यालय में पढ़ रही छात्रा को एक महामारी और संक्रमण के काल में जेल में डाल दिया जाता है। वह सरकार जो कहती है बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ एक बेटी को उसके गर्भ में पल रही संतान के साथ जेल में डाल देती है।

ओह सफूरा! मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूं तो सो नहीं पाती। मुझे न खाना अच्छा लगता  है न पानी। मैं इस आतताई सरकार से तुम्हें छीन कर ले आना चाहती हूं। मैं सोचती हूं उस जेलर के बारे में जो तुम्हारे लिए खाना लेकर आता होगा या आती होगी। क्या वह पूछता/पूछती होगी इस समय तुम्हें क्या खाने का मन है! तुम्हें अगर उबकाई आए खाने को देख कर तो क्या कोई ले आएगा वहां आइसक्रीम या चटपटा सा कुछ! वे सरकारी विज्ञापन जो गर्भवती मां को पौष्टिक भोजन की वकालत करते हैं, कितने झूठे हो जाते हैं उस वक्त जब तुम्हारे जैसी उम्मीदों से भरी लड़की से छीन लेना चाहते हैं सवाल उठाने का अधिकार।
 इस लोकतंत्र में जहां हर सजग व्यक्ति को यह हक है कि वह सरकार पर सवाल उठाए। इसी देश में किसी ने कहा था, ज़िंदा नस्लें पांच साल इंतजार नहीं करतीं हम एक गैर जिम्मेदार दल को फिर चुन कर सत्ता में ले आए। हम सातवें महीने में कूआं पूजने वाले लोग, ईद पर बकरे के मरने पर मातम मनाने वाले दोगले लोग एक बेटी के लिए इतनी आवाज नहीं उठा सकते कि तुम्हें अपनी संतान को कोख में पालने का सुख जीने दें। हम सब तुम्हारे गुनहगार हैं।
क्या हो कि तुम पर लगाई तोहमतें सच भी हों तो तुम्हें इस वक्त अपने बच्चे को सुरक्षित माहौल में जन्म देने का हक है। जबकि सच तो यह है कि झूठ और जुल्म की कोई सीमा नहीं रही। मैं इस वक्त सिर्फ अपनी दुआएं तुम तक भेज रही हूं और उम्मीद करती हूं कि पुलिस, अदालत और सरकार समेत इस व्यवस्था में कहीं कोई मनुष्य ज़िंदा हो, और तुम अपने घर के सुरक्षित माहौल में लौट सको।
प्यार और बहुत हिम्मत भेजती हूं तुम्हें!


Devyani Bhardwaj

( साभार - फेसबुक पोस्ट )

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