Monday 15 June 2020

गजल/कविता



(तेलगु कवि प्रो. वरवर राव की तीन कविताएं)

 1. कवि

जब प्रतिगामी युग धर्म
घोंटता है वक़्त के उमड़ते बादलों का गला
तब न ख़ून बहता है, न आँसू।


वज्र बन कर गिरती है बिजली
उठता है वर्षा की बूंदों से तूफ़ान…
पोंछती है माँ धरती अपने आँसू
जेल की सलाखों से बाहर आता है
कवि का सन्देश गीत बनकर।


कब डरता है दुश्मन कवि से?
जब कवि के गीत अस्त्र बन जाते हैं
वह कै़द कर लेता है कवि को
फाँसी पर चढ़ाता है
फाँसी के तख़्ते के एक ओर होती है सरकार
दूसरी ओर अमरता
कवि जीता है अपने गीतों में
और गीत जीता है जनता के हृदयों में।


      2. मूल्‍य

हमारी आकांक्षाएँ ही नहीं
कभी-कभार हमारे भय भी वक़्त होते हैं
द्वेष अंधेरा नहीं है
तारों भरी रात में
इच्छित स्थान पर
वह प्रेम भाव से पिघल कर
फिर से जम कर
हमारा पाठ हमें ही बता सकते हैं
कर सकते हैं आकाश को विभाजित।


विजय के लिए यज्ञ करने से
मानव-मूल्यों के लिए लड़ी जाने वाली लड़ाई
ही कसौटी है मनुष्य के लिए
युद्ध जय-पराजय में समाप्त हो जाता है
जब तक हृदय स्पंदित रहता है
लड़ाइयाँ तब तक जारी रहती हैं।


आपसी विरोध के संघर्ष में
मूल्यों का क्षय होता है
पुन: पैदा होते हैं नए मूल्य…
पत्थरों से घिरे हुए प्रदेश में
नदियों के समान होते हैं मूल्य।

आन्दोलन के जलप्रपात की भांति
काया प्रवेश नहीं करते
विद्युत के तेज़ की तरह
अंधेरों में तुम्हारी दृष्टि से
उद्भासित होकर
चेतना के तेल में सुलगने वाले
रास्तों की तरह होते हैं मूल्य।


बातों की ओट में
छिपे होते हैं मन की तरह
कार्य में परिणित होने वाले
सृजन जैसे मूल्य।

प्रभाव मात्र कसौटी के पत्थरों के अलावा
विजय के उत्साह में आयोजित
जश्न में नहीं होता
निरन्तर संघर्ष के सिवा
मूल्य संघर्ष के सिवा
मूल्य समाप्ति में नहीं होता है
जीवन-सत्य।


  3. स्‍टील प्‍लान्‍ट

हमें पता है
कोई भी घास वटवृक्ष के नीचे बच नहीं सकता
सुगंधित केवड़े की झाड़ियाँ
कटहल के गर्भ के तार
काजू बादाम नारियल ताड़
धान के खेतों, नहरों के पानी
रूसी कुल्पा नदी की मछलियाँ
और समुद्रों में मछुआरों के मछली मार अभियान को
तबाह करते हुए
एक इस्पाती वृक्ष स्टील प्लांट आ रहा है।

उस प्लांट की छाया में आदमी भी बच नहीं पाएंगे
झुर्रियाँ झुलाए बग़ैर
शाखाएँ-पत्तियाँ निकाले बग़ैर ही
वह घातक वृक्ष हज़ारों एकड़ में फैल जाएगा।


गरुड़ की तरह डैनों वाले
तिमिगल की तरह बुलडोजर
उस प्लांट के लिए
मकानों को ढहाने और गाँवों को खाली कराने के लिए
आगे बढ़ रहे हैं।

खै़र, तुम्हारे सामने वाली झील के पत्थर पर
सफ़ेद चूने पर लौह-लाल अक्षरों में लिखा है
“यह गाँव हमारा है, यह धरती हमारी है–
यह जगह छोड़ने की बजाय
हम यहाँ मरना पसन्द करेंगे”।


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