Thursday, 25 June 2020

गजल/कविता

तुफान कभी मात नहीं खाते
   ( अवतार सिंह 'पाश' )

हवा का रूख बदलने से
बहुत उछले, बहुत कूदे
वे जिनके शामियाने डोल चुके थे
उन्होंने ऐलान कर दिया
अब वृक्ष शांत हो गए हैं
अब तूफान का दम टूट गया है -

जैसे कि जानते ही न हों
ऐलानो का तूफानों पर
कोई असर नहीं होता
जैसे कि जानते ही न हों
वह उमस बहुत गहरी थी
जहाँ से तूफान ने जन्म लिया 
जैसे कि जानते ही न हों
तूफानों की वजह
वृक्ष ही नहीं होते
वरन् वह घुटन होती है
धरती का मुखड़ा जो
धूल में मिलाती है
ओ भ्रमपुत्रो, सुनो
हवा ने दिशा बदली है
हवा बंद नहीं हो सकती

जब तक कि धरती का मुखड़ा
टहक गुलजार नहीं बनता
तुम्हारे शामियाने आज गिरे
कल गिरे
तूफान कभी मात नहीं खाते ।

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