उलगुलान अभी जारी है
सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को रांची के उलीहातू गांव में हुआ था । प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चईबासा इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने गए । वह हमेशा अपने समाज की दुर्दशा पर सोचते रहते थे । उन्होंने मुंडाओं को अंग्रेजों से मुक्ति पाने हेतु संगठित किया । 1894 में छोटा नागपुर क्षेत्र में वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली । बिरसा ने पूरे मनोयोग से लोगों की सेवा की ।
मुंडा विद्रोह
1 अक्टूबर 1893 को बिरसा ने सभी मुंडाओं को एकत्र करके लगान माफी के लिए आंदोलन किया । 1895 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 2 साल के कारावास की सजा दी गई । तब तक उस इलाके के लोग उन्हें "धरती बाबा" के नाम से पुकारने लगे थे । उनके बढ़ते प्रभाव के साथ मुंडाओं में संगठित होने की चेतना भी जागने लगी ।
1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच कई युद्ध हुए और बिरसा और उसके लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम किए रखा । 1896 में बिरसा और उसके 400 सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोला । 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेना से हुई, जिसमें एक बार तो अंग्रेज हार गए, पर बाद में, उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ्तारियां हुई ।
जनवरी 1900 में डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ । इसमें बहुत सी औरतें और बच्चे भी मारे गए । उस जगह बिरसा एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे । बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ्तारियां भी हुई । अंत में बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ्तार कर लिए गए ।
बिरसा ने अपनी अंतिम सांसे 9 जून, 1900 को रांची कारागार में ली । आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा को लोग अपने महान आदर्श के रूप में देखते हैं ।
(नोट -: यह जीवनी अभियान प्रकाशन द्वारा प्रकाशित जरा याद करो कुर्बानी पुस्तक से ली गई है । इस पुस्तक में 77 शहीदों की जिंदगी का सफरनामा शामिल किया गया है ।)
Sir 1 November 1900 को तो उन्होंने अंतिम सांस ली लेकिन 1990 में गिरफ्तार कैसे हुए
ReplyDeleteइस मिस्टेक के बारे में बताए।
मुझे कहीं 1990 नजर नहीं आया।
ReplyDeleteये ऊपर वाले कमेंट के बारे मे है।
YAH TYPING KI VJH SE GLTI HO GYI THI. DHAYAN DILWANE KE LIYE DHANYWAD.
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