Wednesday 2 September 2020

आदिविद्रोही भाग-3

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(कथाएं, लोककथाएं बन जाती हैं, मगर उत्पीड़कों के विरुद्ध उत्पीडितों  का संघर्ष बराबर चलता रहता है। यह एक ऐसी लौ है जो कभी तेज जलती है, कभी मद्धिम, पर बुझती कभी नहीें।)



क्रिक्सस का सपना था कि रोम का ध्वंस किया जाए। वह इस सपने को अपने सीने से चिपकाए था। मगर स्पार्टकस जान गया था कि कोई सपना मर गया और असंभव हो गया। एक क्षण आया जब उसे लगा कि वे रोम का ध्वंस नहीं कर सकेंगे बल्कि रोम ही उनका ध्वंस करेगा। इस  निराशा की शुरूआत उस समय हुई जब क्रिक्सस के नेतृत्व में 20 हजार गुलाम अलग होकर चले गए। फिर, एक दिन खबर आई कि क्रिक्सस, वह लंबा, तगड़ा गॉल वीर नहीं रहा, उसकी फौज नष्ट हो गई। यह सुनकर स्पार्टकस को लगता है कि मौत आज फिर जिंदगी से जीत गई है। उसकी आँखें आँसुओं से भर उठती हैं। वह रोते हुए कहता है, ''ऐसा क्यों हुआ, हम लोगों ने कहाँ पर भूल की, हम नाकाम क्यों  रहे? क्रिक्सस! मेरे साथी! तुम क्यों मरे? तुम क्यों इतने हठीले थे? सारी दुनिया में सुबह के घंटे बज रहे थे, अब फिर काली रात आएगी।"
वे सभी समझ गए थे कि खेल अब खत्म हो चुका है, कि आने वाली लड़ाई उनकी आखिरी लड़ाई होगी। स्पार्टकस अपनी गर्भवती पत्नी वारिनिया को अंतिम विदा कर चुका था। लड़ाई शुरू होने वाली थी। उसने अपने साथियों से कहा, ''मेरे प्यारे साथियो ! आज अगर हम नाकाम भी रहते हैं तो भी हमने ऐसा काम किया है, जिसे मानव जाति हमेशा-हमेशा याद रखेगी।" फिर उसने अपने साथियों को गले लगाया।
थोड़ी देर में लड़ाई शुरू हो जाती है, गुलाम बड़ी बहादुरी से लड़ते हैं, परन्तु स्पार्टकस की बात सच होती है। बहुत से गुलाम योद्धा मारे जाते हैं, स्पार्टकस भी वीरगति को प्राप्त होता है। काफी गुलामों को बंदी बना लिया जाता है। उनमें बेहोश डेविड भी होता है।

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छ: हजार चार सौ बहत्तर गुलाम योद्धाओं को सड़कों के किनारे सलीबों पर टांग दिया जाता है। रोमन सभ्यता यहां तक पहुँच जाती है कि बहुत से गुलामों का कीमा-चटनी बनाकर बाजार में बेच दिया जाता है। पकड़े गए ग्लैडिएटरों को जोड़ों से लड़ाया जाता है, जिसमें एक का मरना जरूरी होता है। और इस सब में से बचकर निकलने वाला आखिरी ग्लैडिएटर है -- डेविड। यह यहूदी वीर , जो स्पार्टकस का प्रिय साथी था। उसे भी सूली पर चढ़ा दिया गया। मरते समय भी उसके मन में न्याय और अन्याय के प्रश्न थे। साथ ही और भी बहुत से प्रश्न थे। जैसे कि -- ''स्पार्टकस! स्पार्टकस ! हम नाकाम क्यों रहे? हमारा जीवन-लक्ष्य धूल में क्यों खो गया?" यदि किसी तरह सूली पर टंगे उन सभी लोगों के दिमाग को पढ़ा जा सकता तो उन सबमें यह प्रश्र अवश्य मिलता -- ''हम नाकाम क्यों रहे?"
वारिनिया को रोमन सेनापति ने अपने घर पर कैद कर लिया था। परन्तु वह एक भले आदमी की मदद से निकल भागती है तथा अपने बच्चे के साथ दूर-देहात में एक किसान के घर में रहने लगती है। वह अपने बेटे का नाम भी स्पार्टकस रखती है और उसे बताती है कि उसके पिता तथा उनके साथी एक ऐसी दुनिया बनाना चाहते थे, जहाँ कोई गुलाम या मालिक न होंगे।
इसी तरह कहानी आगे बढ़ती जाती है, स्पार्टकस का बेटा, अपने बेटे को यह संघर्ष गाथा सुनाता है तथा इन्हीं संघर्षों में वीर गति को प्राप्त हो जाता है।
कथाएं, लोककथाएं बन जाती हैं, मगर उत्पीड़कों के विरुद्ध उत्पीडितों  का संघर्ष बराबर चलता रहता है। यह एक ऐसी लौ है जो कभी तेज जलती है, कभी मद्धिम, पर बुझती कभी नहीें।
और साथियो ! स्पार्टकस कभी मरा नहीं, क्योंकि यह रक्त की परम्परा नहीं, बल्कि मिले-जुले संघर्ष की परम्परा थी।
एक समय आएगा जब रोम को तोड़कर गिरा दिया जाएगा। उसे तोडऩे वाले गुलाम होंगे, मजदूर होंगे, किसान होंगे तथा तमाम मेहनतकश आवाम होगा। फिर एक दिन ऐसा आएगा जब स्पार्टकस का महान सपना सच होगा।

THE END

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