(आज अवतार सिंह पाश का जन्मदिन है। पाश एक जनकवि थे जिन्होंने हमेशा जनता के पक्ष में आवाज बुलंद की ओर उसी पक्षधरता के कारण वो बहुत ही कम उम्र में हमारे बीच से विदा हो गए। लेकिन उनकी कविताएं जिंदा रही। कोई भी जनांदोलन ऐसा नहीं है जहां पर पाश की कविताओं के पोस्टर न बनाए जाते हों या फिर कविताओं का पाठ न किया जाता हो। तो हम पाश की उन छोटी छोटी कविताओं से आपका परिचय करवाने की कोशिश करेंगे जिनकी ओर बहुत ही कम ध्यान गया है।)
'अभियान' समाज में बढ़ रही अंधविश्वास, अध्यात्मवाद, उपभोक्तावाद और विलासिता की सामंती व साम्राज्यवादी संस्कृति को खत्म कर, स्वस्थ संस्कृति के निर्माण के लिए तथा जनता को समस्याओं के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करने हेतु प्रयत्नशील है । और हर प्रकार के जातीय, महिला व आर्थिक शोषण के खिलाफ संघर्षरत है । आपसे अपील है कि आप अपनी रचनाएं तथा सुझाव भेजकर इस अभियान में शामिल हों । E-mail :- janaabhiyan@gmail.com
Wednesday, 9 September 2020
कविता
1. हुकूमत
हुकूमत!
तुम्हारी तलवार का कद बहुत छोटा है
कवि की कलम से कहीं छोटा
कविता के पास अपना बहुत कुछ है
तुम्हारे कानून की तरह वह खोखली नहीं है
कविता के लिए तुम्हारी जेल हजार बार हो सकती है
लेकिन यह कभी न होगा
कि कविता तुम्हारी जेल के लिए हो
2. हमारे लहू
हमारे लहू को आदत है
मौसम नहीं देखता, महफिल नहीं देखता
जिंदगी के जश्न शुरू कर लेता है
सूली के गीत छेड़ लेता है
शब्द हैं कि पत्थरों पर बह बहकर घिस जाते हैं
लहू है कि तब भी गाता है
जरा सोचें कि रूठी सर्द रातों को कौन मनाए?
निर्मोही पलों को हथेलियों पर कौन खिलाए?
लहू ही है जो रोज धाराओं के होंठ चूमता है
लहू तारीख की दीवारों को उलांघ आता है
यह जश्न यह गीत किसी को बहुत हैं -
जो कल तक हमारे लहू की खामोश नदी में
तैरने का अभ्यास करते थे।
3. तब भी मेरे शब्द
तब भी मेरे शब्द रक्त के थे
तब भी मेरा रक्त लोहे का था
जब मैं जलते फूलों में
घिरा पड़ा था -
फिर जब मैं जल रहे फूलों से बाहर आकर
तलवारों के जंगल में घुसा
तो भी मेरे शब्द रक्त के थे
तो भी मेरा रक्त लौहे का था
और अब मेरे सफर में
जलते फूलों की गंद नहीं
पिघले हुए फौलाद की गंद आती है
और मेरा सफर
मेरा फूल से रक्त तक का सफर
एक इतिहास है
शब्द से आवाज तक का इतिहास
और अब मुझे
होंठों पर किसी भी
खुबसूरती का जिक्र लाने से पहले
तलवारों के कई जंगलों से
गुजरना पड़ता है।
4. जितने भी मांसखोरे हों
जितने भी मांसखोरे हों हथियार
यातनादायी व आधुनिक हों हथियार
भुगता नहीं सकेंगे कभी भी
प्रेम कविता को
कातिलों के हक में।
5. जिन्होंने उम्र भर
जिन्होंने उम्र-भर तलवार का गीत गाया है
उनके शब्द लहू के होते हैं
लहू लोहे का होता है
जो मौत के किनारे जीते हैं
उनकी मौत से जिंदगी का सफर शुरू होता है
जिनका लहू और पसीना मिट्टी में गिर जाता है
वे मिट्टी में दबकर उग आते हैं।
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