Tuesday, 1 September 2020

आदिविद्रोही भाग -2

 [3]


(एक मर रहे साथी से स्पार्टकस ने कहा, ''साथी! हम तुम्हारे नाम को याद रखेंगे। कभी हथियार नहीं डालेंगे। हम लोग भागेंगे नहीं, बल्कि एक के बाद दूसरी जगह जाएंगे, घर-घर में जाएंगे और अपने गुलाम साथियों को आजाद करेंगे। हम रोम का अन्त कर देंगे और एक नये जीवन का निर्माण करेंगे, हम एक ऐसी दुनिया बनाएंगे जिसमें न कोई गुलाम होगा और न कोई मालिक।"
अभी यह सब एक स्वप्र जैसा लगता था। पर उसे देखने का उनका जी हो रहा था।
''हमारा कानून बहुत आसान होगा, जो कुछ भी हमारे पास होगा, सभी का होगा, सिवाए अपने कपड़ों तथा हथियारों के। हम लोग स्त्री को केवल साथी के रूप में रखेंगे। एक व्यक्ति चाहे वह कोई भी क्यों न हो, एक से अधिक स्त्री नहीं रखेगा।"
इन सब बातों पर उनमें पूर्ण मतैक्य था।
.........................................................
परन्तु स्पार्टकस के भीतर आशाओं, निराशाओं, चिन्ताओं तथा संदेहों की आंधियाँ चल रही थीं। उसके चिन्तित चेहरे पर हाथ फिराते हुए वारिनिया ने पूछा, ''प्राण, तुम फिर कोई स्वप्र देख रहे हो?"
''हाँ, मैं देख रहा हूँ कि हम एक नया संसार बनाएंगे। देखो ! इस संसार में एक भी चीज ऐसी नहीं है जो हमने न बनाई हो। नगर, मीनारें, दीवारें, सड़कें, महल, जहाज.....!  सभी कुछ तो हमने बनाया है। हम इस नव निर्माण के लिए दुनिया भर के गुलामों का आह्वान करेंगे!")


स्पार्टकस सो रहा था और उसकी पत्नी, वह जर्मन बाला वारिनिया -- जिसे बाटियाटस ने सिर्फ 500 दिनार में खरीदा था और जब वह उसके काबू नहीं आई तो उसे सबक सिखाने के लिए स्पार्टकस को सौंप दिया था, उसके कराहने तथा नींद में पागलों की तरह बड़बड़ाने से जगी उसके पास बैठी थी। वह बहुत सी चीजों के बारे में बातें कर रहा था। क्षण भर पहले वह एक बच्चा था, फिर देखो तो खानों में पहुंंच गया। अगले ही क्षण लड़ाई के अखाड़े में और तभी जैसे छुरे ने उसके गोश्त को चाक कर दिया और वह दर्द से चीख पड़ा। जब यह सब देखना वारिनिया के लिए असह्य हो गया, उसने उसे जगा दिया और बड़े प्यार से उसे सहलाने लगी।
धीरे-धीरे वह शांत हो गया और उसने पूछा, ''कभी यह भी सोचा है कि एकदिन हमारा साथ टूट जाए, तब तुम क्या करोगी?"
''हाँ, मैं मर जाऊँगी।" वारिनिया ने सीधे-सरल ढंग से उत्तर दिया।
''पर मैं चाहता हूँ कि मेरे मरने या अलग हो जाने की हालत में भी तुम जीवित रहो।"
''तुम्हारे बिना मेरे लिए जीवन का कोई अर्थ नहीं।"
''पर जीवन के बिना कुछ नहीं है, इसलिए तुम मुझे वचन दो कि हर हाल में जीवित रहोगी।"
अन्तत: वारिनिया ने कहा -- ''मैं वचन देती हूँ।"
अगली सुबह बाटियाटस का गुस्सा हर जगह छाया हुआ था। ग्लैडिएटरों को कोड़े मार-मारकर लाइन में खड़ा किया जा रहा था। स्पार्टकस के एक ओर मैनिकस था तथा दूसरी ओर क्रिक्सस नाम का एक गॉल।
''वह इनमें से किसी को मारे बगैर ही मर गया, आदमी को अगर मरना ही है तो वह इससे अच्छी तरह भी मर सकता है।" गॉल फुसफुसाया।
तब स्पार्टकस के मन में इतने दिनों से जो चेतना थी, वह एक वास्तविकता का रूप लेने लगी। वह वास्तविकता अभी आरंभ हो रही थी, उसका अंत तो अनन्त था और उस भविष्य के गर्भ में छुपा था जिसका अभी जन्म नहीं हुआ था। मगर उसका संबंध सभी गुलामों की जिंदगी की मुसीबतों से था।
तभी गुस्से में बेहाल बाटियाटस आया और गुलामों को सबक देने के लिए एक हब्शी गुलाम को भालों से बिंधवा दिया।
''मैं तुम्हें अपना दोस्त कहता हूँ।"  दु:ख और गुस्से को पीते हुए स्पार्टकस ने क्रिक्सस से  कहा।
क्रिक्सस उसके बगल की कोठरी में रहता था और बहुत बार स्पार्टकस ने उससे सिसिली के गुलामों के अनेक विद्रोहों के बारे में सुना था। कुछ साल पहले भी वहां की तीन जागीरदारियों में विद्रोह हुआ था। उनमें 900 गुलाम थे, बहुतों को मौत के घाट उतार दिया गया था। थोड़े से बचे गुलामों को जहाज पर बेच दिया गया था। क्रिक्सस उन्हीं में से एक था। उसके लोगों में बहुत से बहादुर वीर थे, जैसे वह वीर युनूस, जिसने उस द्वीप के एक-एक गुलाम को आजाद करवाया था और मरने से पहले तीन-तीन रोमन सेनाओं का ध्वंस किया था। फिर यूनान का वह एथीनियन, थ्रेस का सैल्वियस, जर्मनी का उण्डार्ट। इन सभी की कहानियाँ सुनकर स्पार्टकस का हृदय गर्व  से भर उठता था। फिर यूनान की, स्पेन की खानों के गुलामों का महान विद्रोह, इन सबके बारे में सुनकर वह उन मृत वीरों की इच्छा को, उनके स्वप्र को अच्छी तरह समझने लगा था।
उसने निश्चय किया कि अब वह किसी भी ग्लैडिएटर से नहीं लड़ेगा। फिर भूत-भविष्य-वर्तमान सब एक में मिल गए और उस थ्रेसियन गुलाम ने हजारों वर्ष का बोझ अपने ऊपर अनुभव किया । जो पहले कई हजार वर्ष में नहीं हुआ था, वह अब कुछ घंटों में होने वाला था।
आज भी सभी ग्लैडिएटर आकर खाने के हाल में बैठ गए, हाल के दरवाजे बाहर से बंद कर दिए गए। बावर्चीखाने में काम करने वाली गुलाम औरतें उन्हें खाना परोसने लगीं। चार उस्ताद, हाल के बीच में घूम रहे थे। दो सिपाही दरवाजे पर तैनात थे तथा बाकी करीब सौ गज दूर नाले के उस पार छाया में बैठे सुबह का नाश्ता कर रहे थे।
स्पार्टकस ने यह सब देखा, उसका मुंह सूख रहा था और दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसे सिर्फ इतना पता था कि उसे ग्लैडिएटरों से बात करनी है। आगे क्या होगा इसका उसे कोई आभास नहीं था। उसने क्रिक्सस से कहा, ''मैं कुछ बोलना चाहता हूँ, जब मैं बोलूँगा तो फिर पीछे हटना नामुमकिन होगा, और हमारे ये उस्ताद हमें रोकने की कोशिश करेंगे।"
''वे तुम्हें नहीं रोकेंगे, तुम बोलो।" दैत्याकार गॉल ने कहा। यहूदी डेविड, गैनिकस तथा कई और गुलाम उसके पास खिसक आए।
स्पार्टकस के साथ-साथ दर्जनों ग्लैडिएटर उठकर खड़े हो गए। उस्तादों ने उनके ऊपर कोड़े बरसाने तथा छुरे चलाने शुरू किए पर ग्लैडिएटरों ने उन्हें देखते-देखते खत्म कर दिया।
''सभी मेरे पास आ आओ।" स्पार्टकस ने कहा। वारिनिया बावर्ची खाने में काम कर रही थी, वह आकर उसके बगल में खड़ी हो गई तथा शेष उसे घेरकर खड़े हो गए। इसी पल उसे आजादी का सुखद अहसास हुआ। मगर इसके साथ भय भी था, उस आदमी का भय, जो कि अपरिवर्तनीय निश्चय करता है और जानता है कि उसके रास्ते में हर कदम पर मौत खड़ी है। वह जानता था कि उसके  साथियों के मन अन्धविश्वासों तथा अज्ञान से भरे हुए हैं तथा भविष्य के प्रति उनके मन में भयंकर संदेह है। इसलिए उसने महसूूस किया कि उसके लिए जरूरी है कि वह भविष्य को समझे और अगर उस तक जाने के लिए कोई मार्ग नहीं है तो वह मार्ग बनाए।
उसने कहा, ''मैं अब कभी ग्लैडिएटर नहीं बनूँगा, पहले मैं मरूँगा। क्या तुम मेेरा साथ दोगे?"
यह सुनकर उनकी आँखों में आँसू भर आए और वे उसके और नजदीक खिसक आए।
उसने कहा, ''अब हम सब साथी होंगे और हर काम में एक  साथ रहेंगे। अब सबसे पहले सिपाहियों को......। पर याद रखो ! कि वे भागेेंगे नहीं, इसलिए हमें उन्हें खत्म कर देना होगा, नहीं तो वे हमें खत्म कर देंगे, और यह भी याद रखो कि रोमन सैनिकों का कहीं अंत नहीं है, उनके मरने के बाद दूसरे उनकी जगह आ जाएंगे, परन्तु इसके साथ ही यह भी सच है कि गुलामों का भी कहीं अंत नहीं है।"
इसके बाद उन्होंने बड़ी जल्दी तैयारियां कीं, जो भी हथियार के रूप में प्रयोग करने लायक चीजें -- मसलन मूसल, सलाखें, हड्डियां वगैरह मिलीं, उठाकर वे बाहर निकल आए।
उधर तब तक सभी सैनिक तथा उस्ताद भी अस्त्र-शस्त्रों से लैस हो तैयार हो चुके थे। इस तरह दो सौ निहत्थे ग्लैडिएटरों को पूरी तरह सुसज्जित 54 सैनिकों का मुकाबला करना था।
सैनिक इस कूड़े को साफ करने के लिए आगे बढ़े। इसी क्षण में स्पार्टकस सेनापति बन  गया। नेतृत्व एक ऐसा गुण है जिसे पकड़ पाना बहुत कठिन है, खासकर ऐसी परिस्थिति में जब इसके पीछे कोई  सत्ता या वैभव न हो। आदेश तो कोई भी दे सकता है पर इसे इस तरह देना कि दूसरे उसका पालन करें, एक विशेष गुण है और यह गुण स्पार्टकस में था। उसके आदेश का पालन करते हुए ग्लैडिएटरों ने सैनिकों को एक घेरे में ले लिया और इन सर्कश ग्लैडिएटरों के घेरे में फंसकर महान रोमन शक्ति और उसका अनुशासन निपट असहाय होकर रह गए।
''पत्थर फेंको! पत्थर चलाओ !!" स्पार्टकस चिल्लाया। पत्थरों की बौछार ने  सैनिकों को झुकने और रुकने के लिए मजबूर कर दिया। औरतें, घरों तथा खेतों में काम करने वाले गुलाम भी आ-आकर घेरे में शामिल होने लगे। एक दस्ते ने जैसे ही आगे बढ़कर हमला करने की कोशिश की, ग्लैडिएटर उसके ऊपर चढ़ दौड़े तथा मिनटों में उसे खत्म कर दिया। सैनिक पूरा जोर लगाकर लड़ रहे थे, पर ग्लैडिएटरों ने उन्हें खाली हाथों से ही मार-माकर खत्म कर दिया। उस्ताद भी मार डाले गए.....।
लड़ाई अब शहर की सड़कों पर हो रही थी। इस लड़ाई में बहुत से ग्लैडिएटर भी वीरगति को प्राप्त हुए।
मगर यह तो शुरूआत भर थी --  खून से लथपथ, विजय के गर्व से भरी हुई और उसके उल्लास को लिए हुए। सभी खुशी मना रहे थे, नाच रहे थे और अपनी जीत के नशे में चूर वे लोग उसी समय इतिहास के बाहर निकल जा सकते थे, क्योंकि सैनिक शहर के फाटक से बाहर निकलने लगे थे। तभी स्पार्टकस उन्हें होश में ले आया, उसने हुक्म दिया कि सभी सैनिकों के हथियार इकट्ठे कर लिए जाएं! उसकी कोमलता अब गायब हो चुकी थी। गुलामी की जंजीरों को तोड़ देने का एकाग्र संकल्प उसके भीतर एक तेज लौ की भाँति जल रहा था, उसकी सारी जिन्दगी, सारा धीरज इसी तैयारी के लिए था। उसने सदियों इंतजार किया था, आज के दिन का इंतजार वह उस दिन से कर रहा था जिस दिन पहले इंसान को गुलामी की जंजीरों में जकड़ा गया था। अब वह इससे किसी भी हालत में अलग नहीं हो सकता था, क्योंकि वह जानता था कि गुलाम के लिए कहीं शरण लेने को जगह न थी। और यह सीधी-सी बात उसकी समझ में आ गई थी कि इस दुनिया में जिन्दा रहने के लिए उन्हें इस दुनिया को ही बदलना होगा....!
''भागने को कहीं जगह नहीं है, हम इन सैनिकों का मुकाबला करेंगे।" उसने कहा।
सैनिकों की तादाद गुलामों से काफी ज्यादा थी और वे पूरी तरह से लैस थे, मगर उन्हें यह आशा नहीं थी कि गुलाम लड़ेंगे जबकि गुलाम जानते थे कि सैनिक लड़ेंगे। गुलाम वापिस मुड़कर तेजी से सैनिकों की तरफ दौड़े और सैनिक इस अप्रत्याशित हमले से हैरान हो गए तथा इनका मुकाबला न कर सके व भाग खड़े हुए। यह दुनिया को हिला देने वाली घटना थी कि गुलाम दिन में दो बार अपने मालिक को मार भगाए।
शहर से बाहर एक पहाड़ी पर सभी गुलाम एकत्रित हुए। चारों तरफ की जागीरों से और भी गुलाम भाग-भागकर उनसे मिल रहे थे और अब वे एक छोटी-सी सेना बन गए थे, स्पार्टकस उनका नेता था, इसके बारे में कोई बहस न थी। वह उनके बीच खड़ा था। उसने कहा, ''अब हम एक कबीला हैं तथा आजाद हैं। जो भी कोई नेतृत्व करना चाहता हो, आगे आए।"
कोई खड़ा नहीं हुआ, सभी ने तालियाँ बजाकर स्पार्टकस का अभिवादन किया। मैनिकस चिल्लाया, ''स्पार्टकस जिन्दाबाद!"
एक मर रहे साथी से स्पार्टकस ने कहा, ''साथी! हम तुम्हारे नाम को याद रखेंगे। कभी हथियार नहीं डालेंगे। हम लोग भागेंगे नहीं, बल्कि एक के बाद दूसरी जगह जाएंगे, घर-घर में जाएंगे और अपने गुलाम साथियों को आजाद करेंगे। हम रोम का अन्त कर देंगे और एक नये जीवन का निर्माण करेंगे, हम एक ऐसी दुनिया बनाएंगे जिसमें न कोई गुलाम होगा और न कोई मालिक।"
अभी यह सब एक स्वप्र जैसा लगता था। पर उसे देखने का उनका जी हो रहा था।
''हमारा कानून बहुत आसान होगा, जो कुछ भी हमारे पास होगा, सभी का होगा, सिवाए अपने कपड़ों तथा हथियारों के। हम लोग स्त्री को केवल साथी के रूप में रखेंगे। एक व्यक्ति चाहे वह कोई भी क्यों न हो, एक से अधिक स्त्री नहीं रखेगा।"
इन सब बातों पर उनमें पूर्ण मतैक्य था।
विद्रोह की  खबर जंगल की आग की तरह फैलती जा रही थी। चारों तरफ से गुलाम अपने औजारों के साथ आकर मिल रहे थे। अब वे लोग धीरे-धीरे, प्यार के साथ हँसते-गाते आगे बढ़ रहे थे। उन सबको आजादी का, प्रेम का तथा स्वाभिमान का थोड़ा-थोड़ा स्पर्श मिल गया था। उनमें एक भी ऐसा न था जिसने उस रात एक नये संसार का, गुलामों से रहित संसार का स्वपन न देखा हो।
परन्तु स्पार्टकस के भीतर आशाओं, निराशाओं, चिन्ताओं तथा संदेहों की आंधियाँ चल रही थीं। उसके चिन्तित चेहरे पर हाथ फिराते हुए वारिनिया ने पूछा, ''प्राण, तुम फिर कोई स्वप्र देख रहे हो?"
''हाँ, मैं देख रहा हूँ कि हम एक नया संसार बनाएंगे। देखो ! इस संसार में एक भी चीज ऐसी नहीं है जो हमने न बनाई हो। नगर, मीनारें, दीवारें, सड़कें, महल, जहाज.....!  सभी कुछ तो हमने बनाया है। हम इस नव निर्माण के लिए दुनिया भर के गुलामों का आह्वान करेंगे!"


[4]


रोमन सत्ता के गलियारों में विद्रोह की खबर से हड़कंप मचा था। रोमन सीनेटर कबूतरों की तरह कोनों में दुबकते फिर रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि ये जानवर विद्रोह कैसे कर सकते हैं? महान् रोमन सत्ता के खिलाफ विद्रोह? जिसके न्याय का डंका पूरी दुनिया में बजता है, जिसने पूरी दुनिया को सुख, समृद्धि और शान्ति का रास्ता दिखलाया। इस डरी हुई महान् सीनेट ने,  गुलामों के सफाए के लिए शहर की फौज में से छ: टुकड़ियां भेज दीं। साथ ही शहर में अमन शान्ति बनाए रखने के लिए, नागरिकों के  डर को दूर करने के लिए व गुलामों को नसीहत देने के लिए, अस्सी निर्दोष गुलामों को सूली पर चढ़ा दिया।
गुलामों के सफाए के लिए भेजी गई फौज में तकरीबन साढ़े तीन हजार सिपाही थे। कई रोज तक उनकी तरफ से कोई खबर नहीं आई। फिर पता चला कि गुलामों ने उस फौज को नष्ट कर दिया। यह पता लगते ही पूरे शहर में खौफ छा गया।
चौबीस घण्टे के बाद उन टुकडिय़ों में से शेष बचे एक सैनिक को सीनेट के सामने पेश किया गया। उसके हाथ में राजदूत का वह छोटा-सा डण्डा था जिसे फौज के कमाण्डर को सौंपा गया था और जिसके बारे में कहा जाता था कि उसमें एक हमला करती फौज से भी ज्यादा ताकत है क्योंकि वह सीनेट की सत्ता व शक्ति का प्रतीक है।
ग्रैकस नाम के सीनेटर ने उठकर वह डण्डा उसके हाथ से ले लिया तथा उसे निर्भय हो जो कुछ घटा था, साफ-साफ बयान करने को कहा।
सैनिक ने अटकते हुए कहना शुरू किया -- ''गुलामों की तरफ बढ़ती सेना कोई बहुत सन्तुष्ट तथा प्रसन्न सेना न थी। गर्मी में हथियारों की रगड़ ने उनके शरीर पर जगह-जगह जख्म कर दिए थे। थकान से उनकी हालत ऐसी थी कि शिकायत के स्वर भी कहीं भीतर ही खो गए थे। तभी उन्होंने खेतों में काम करने वाले तीन गुलाम मर्दों तथा एक औरत को देखा। पूरी फौज उन पर बुरी तरह पिल पड़ी।"
''क्या उन्होंने तुम पर आक्रमण किया था?" ग्रैकस ने पूछा।
''नहीं, वे तो हमें देखने के लिए भागकर आए थे। और हमारे सैनिकों ने उस औरत के कपड़े नोंच डाले तथा एक के बाद एक उस पर टूट पड़े।"
''तुम्हारे अफसरों ने हस्तक्षेप किया?"
''नहीं हुजूर! वे कुछ नहीं बोले।"
''आगे क्या हुआ, क्या तुमने रात के पड़ाव के लिए किलेबन्दी की?"
''नहीं, सभी इधर-उधर पड़े रहे। क्योंकि अफसरों का ख्याल था कि इन मुठ्ठी-भर गलीज गुलामों से इतना डरने की जरूरत नहीं है। फिर मैं भी सो गया और किसी के चीखने से मेरी नींद खुल गई। मैं उठ बैठा, फिर मेरी समझ में आया कि ये तो बहुत-से लोग चीख रहे थे। चारों तरफ गुलाम ही गुलाम दिखाई दे रहे थे। उनके छुरे ऊपर उठते थे और नीचे आते थे। इस तरह थोड़ी ही देर में उन्होंने हमारी फौज को काटकर रख दिया। इसके बाद किसी ने मुझे पकड़कर उठा दिया। मैंने तलवार चलानी चाही पर उन्होंने उसे झटका देकर गिरा दिया। वे मेरा काम तमाम करने ही वाले थे कि एक थ्रेसियन वहाँ आया और बोला, ''रुको! मेरा ख्याल है यह अकेला ही बच रहा है.....रोमन सत्ता का प्रतीक! इसे मत मारो!" फिर मुझे कुछ गुलामों के पहरे में छोड़ दिया गया। और वे लोग सैनिकों के वस्त्र, हथियार वगैरह उतारकर इकठ्ठे करने लगे। गुलामों की टोली इस सबकी देखरेख कर रही थी और उस टोली का नेता टूटी नाक वाला एक थ्रेसियन था। फिर वे लोग मेरे पास आए और उस थ्रेसियन ने यह राजदण्ड मुझे थमा दिया तथा बोला, ''मेरा नाम स्पार्टकस है, रोमन! इस नाम को याद रखना। कल तुमने उन गुलामों को क्यों मारा? वे तो तुम्हें केवल देखने आए थे। फिर रोम की स्त्रियाँ क्या इतनी सती-साध्वी हैं कि पूरी रोमन सेना को एक बेचारी गुलाम औरत के ऊपर........!"
उन्हें हमारे बारे में सबकुछ मालूम था।
उसने फिर कहा, ''रोमन! मैं तुम्हें एक सन्देश देता हूँ। इसे शब्दश: अपनी महान् सीनेट के पास ले जाकर कहो। सीनेट से कहो -- तुमने हमारे खिलाफ फौज भेजी थी, हमने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। दुनिया तुम लोगों से, तुम्हारे सड़े-गले रोम से, तुम्हारे कोड़ों के संगीत से तंग आ चुकी है। तुम्हारी तमाम शानो-शौकत से तंग आ चुकी है जो तुमने हमारा खून निचोड़कर बनाई है। शुरू में सब लोग बराबर थे। मगर अब दो तरह के लोग हैं -- मालिक और गुलाम। पर हम तुमसे बहुत ज्यादा हैं, तुमसे अच्छे हैं, नेक हैं। इन्सानियत के पास जो कुछ अच्छा है वह हमारा है। हम अपनी औरतों की इज्जत करते हैं, मगर तुम अपनी औरतों को वेश्या बना देते हो। तुम आदमियों को जानवरों से भी बदतर बना देते हो, उन्हें अखाड़े में भेजते हो, ताकि तुम्हारी तफरीह के लिए वे एक-दूसरे के टुकड़े कर डालें। कितने जलील लोग हो तुम, जिन्दगी को तुमने कितना गन्दा बना दिया है।"
''तुम मजाक उड़ाते हो इन्सान की मेहनत और पसीने का। तुमने जिन्दगी की सारी खूबसूरती लूट ली है। मगर अब यह चीज नहीं चलेगी। अपनी सीनेट से कहो - अपनी और फौजें हमारे खिलाफ भेजे। हम उन्हें भी काटकर गिरा देंगे और तुम्हारे हथियारों से ही खुद को लैस करेंगे। हम दुनिया-भर के गुलामों से कहेंगे कि उठो! और अपनी जंजीरें तोड़ दो। फिर एक दिन हम तुम्हारी महानगरी रोम पर धावा बोलेेंगे, तुम्हारे सीनेटरों को उनकी शानदार कुर्सियों में से घसीटकर बाहर निकालेेंगे। उन्हें जाकर बता दो कि वे अपनी पूरी तैयारी कर लेंं। उनके अपराधों का दण्ड हम उन्हें जरूर देेंगे। हम कुछ भूलते नहीें। और जब न्याय हो चुकेगा तब हम तुम्हारे गले-सड़े रोम से अधिक सुन्दर नगर बनाएँगे। खूबसूरत नगर जिनमें दीवारें न होंगी और जहाँ मानवता सुख से, शान्ति से रह सकेगी। तुम्हारी सीनेट के लिए यही हमारा सन्देश है।"
इसके बाद तीसरी सेना को जिसमें कुल 7,000 सैनिक थे, गुलामों से लडऩे भेजा गया। इसके अफसरों ने सेना को तीन टुकड़ों में बाँट दिया और गुलामों ने तीन अलग-अलग लड़ाइयों में उनका सफाया कर दिया। एक बार भागती हुई एक रोमन टुकड़ी, गुलामों के खेमे की तरफ निकल आईं, वहाँ पर केवल बच्चे तथा औरतें थीं। अपनी हार के कारण प्रतिशोध से भरे सैनिकों ने बिना कुछ सोचे खेमे पर हमला कर दिया। वे बच्चों को भालों की नोंक पर उछालने लगे तथा कुछ औरतों को भी मार डाला। परन्तु फिर औरतों ने डटकर मुकाबला किया। उनका नेतृत्व वारिनिया कर रही थी। उसके कपड़े फट गए थे, वह चण्डिका की तरह अपने नेजे से लड़ रही थीं।
इस तरह रोम गुलामों के खिलाफ हर बार बड़ी-से-बड़ी फौज भेजता रहा और गुलाम फौज हर बार जी-जान से लड़कर उनका सफाया करती रही।
अब गुलामों की यह फौज 50 हजार सिपाहियों की एक विशाल सेना है, जिसका सेनापति स्पार्टकस है। बहुत-सी बातों में यह एक ऐसी फौज है जिससे अच्छी फौज दुनिया में आज तक किसी ने न देखी थीं। यह एक ऐसी फौज है जो बहुत सीधे-सादे शब्दों में बगैर किसी कलई-मुल्लमे की आजादी के लिए लड़ती है, जो इन्सान की आजादी और स्वाभिमान के लिए लड़ती है, जो किसी नगर या देश को अपना नहीं कहती क्योंकि इसके सिपाही सभी देशों, नगरों और जातियों से हैं। यह एक ऐसी फौज है जो जीतने के लिए कृतसंकल्प है, जिसे जीतना ही होगा, क्योंकि पीछे लौटने के लिए उनके पास कोई रास्ता नहीं है, कोई देश नहीं है जो उसे आश्रय दे, शरण दे।
आज भी यह फौज लड़ाई के लिए तैयार है। सामने, घाटी के उस पार एक विशाल रोमन फौज खड़ी है जोकि तादाद में सत्तर-अस्सी हजार से कम नहीें है। गुलाम फौज के नेता विचार-विमर्श में लीन हैं। आखिर में वे पहले हमला करने का निर्णय कर अपनी-अपनी रेजीमेंटों में चले जाते हैैं। परन्तु उनके हमला करने से पहले ही रोमन उनके मध्य भाग पर हमला कर देते हैं। गुलाम फौज केवल घंटे भर तक ही अपनी कमान चौकी से सुसंगठित-सुसम्बद्ध ढंग से लड़ाई लड़ पाती है। इसके बाद लड़ाई उनके ऊपर आ जाती है। स्पार्टकस का खेमा टूट जाता है। लड़ाई उसे अपने साथ बहा ले जाती है। चारों तरफ घमासान मचा हुआ है। डेविड साए की तरह स्पार्टकस के साथ है। कोई भी भाला स्पार्टकस को छुए, इससे पहले उसकी लाश गिरेगी। चारों तरफ, मीलों दूर तक हवा में स्पार्टकस का नाम गूँज रहा है। मगर डेविड को कुछ भी सुनाई या दिखाई नहीं देता, सिवाय इसके कि उसके तथा स्पार्टकस के सामने क्या है? उसके होंठ सूख रहे हैं, लड़ाई भयानक-से-भयानकतर होती जा रही है। उसे नहीं मालूम कि क्रिक्सस ने एक-चौथाई रोमन फौज का सफाया कर दिया है। सूरज डूब जाता है, लड़ते-लड़ते वे ढलवान से उतरकर घाटी में आ जाते हैं, फिर वे नदी के भीतर पहुँच जाते हैं और घुटने-घुटने पानी में खड़े होकर लड़ते हैं। नदी का पानी सुर्ख हो जाता है। गुलाम नदी के खूनी पानी में सिर डुबोते हैं और पीते ही चले जाते हैं। पौ फटते-फटते रोमन सेना भाग खड़ी होती है। क्रिक्सस तथा दूसरे साथी जब स्पार्टकस को ढूँढ़ते हुए आते हैं तो देखते हैं कि वह आराम से लाशों के बीच लेटा सो रहा है।

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