Sunday 2 August 2020

रक्षाबंधन

औरतों को कमजोर होने का अहसास दिलाता है रक्षा बंधन का त्यौहार
(संदीप कुमार)



मेरे प्यारे,
दोस्तों/साथियो,

                       आज देश में चारों ओर रक्षाबंधन के त्यौहार को लेकर एक उमंग नजर आ रही है। कोरोना जैसी वैश्विक माहमारी के बावजूद बाजारों में रौनक है। अलग-अलग रंगों की राखियों से दुकानें सजी हुई हैं। मिठाइयों की दुकानों पर भी लाईन लगी है। तमाम परिवहन के साधनों की दिक्कतों के बावजूद कहीं पर बहने अपने भाइयों के घर जा रही हैं और कहीं भाई बहनों के घर जा रहे हैं। इस त्यौहार को भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की तरह देखा जाता है। जिसमें एक मान्यता के अनुसार, बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई इस बात की पुष्टि करते हैं कि वो हर मुसिबत की घड़ी में उनके साथ खड़े हैं। अगर अपनी बहन के लिए जान देनी पड़े तो वो वचन देते हैं कि वो अपनी बहन के लिए, तो उसकी भी चिंता नहीं करेंगे।
लेकिन, सच्चाई इसके एकदम विपरीत है।
हमारा समाज पितृसत्तात्मक समाज है। जिसमें औरतों को पुरूषों से कमजोर समझा जाता है। जिसमें औरतों को घर की इज्जत से जोड़ कर देखा जाता है। और पूरी इज्जत औरत की यौनिकता को कंट्रोल करके बचाने की कोशिश की जाती है। मैं अपने फिल्ड के अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि समाज में औरत को एक वस्तु की तरह देखा जाता है। जहां पर औरतों को सिर्फ यौन इच्छाओं को शांत करने और बच्चे पैदा (लड़का) करने से ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती। 
जो भाई अपनी बहन की रक्षा की कसमें खा रहे होते हैं, वो बहन की किस रूप में रक्षा करने की सोचते हैं, इस पर भी काफी लड़कों से बातचीत की गई। उन्होंने लगभग मिलता जुलता एक ही जवाब दिया कि अगर कोई लड़का हमारी बहन को गलत नजर से देखेगा तो उससे बहन की रक्षा करेंगे और गलत नजर से देखने वालों को सबक सिखाएंगे। इनमें से कुछ ऐसे थे कि जो मुझसे ये बात कर रहे थे और उसी समय गली से जा रही लड़कियों/औरतों को घूर कर देख रहे थे। कुछ ने तो ये भी कहा, "क्या गजब का माल है।" 
ऐसे हम देख सकते हैं कि भाई अपनी बहन की रक्षा को सिर्फ यौनिकता तक ही सिमीत कर देना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि जिस तरह मैं गली से निकलती लडकियों/औरतों के बारे में सोच रहा हूँ, ऐसे ही दूसरे लड़के उसके घर की बहन व औरतों को देखकर सोच रहे होंगे। इस तरह हम देख सकते हैं कि जरूरत बहन की रक्षा करने की नहीं है, जरूरत है तो अपनी सोच बदलने की है। 
हमारे आसपास ऐसे अनेकों उदाहरण बिखरे पड़े हैं। जब किसी की बहन अपनी पसंद से अपना जीवन साथी चुनती है और जब वह अपने घर वालों से उसके साथ अपनी जिंदगी गुजारने की बात करती है (ज्यादातर लड़कियां नहीं कर पाती) तो भाई अपनी कलाई पर बंधी राखी को भूल जाता है और अपनी बहन की उन्हीं हाथों से इज्जत के नाम पर हत्या कर देता है, जिन हाथों पर बहन ने कलाई बांधी थी।
उदाहरणों की कोई कमी नहीं है। अगर कोई बहन अपने पिता की संपत्ति से अपने हिस्से की मांग करती है तो भाई जिंदगी भर के लिए अपनी बहन से समस्त रिश्ते खत्म कर लेता है और यह साहस उसे अपने आसपड़ोस से मिलता है। समाज के सभी लोगों का मानना है कि जो बहन अपनी जमीन ही ले गई उससे रिश्ता रखना ही क्यों? ऐसे उदाहरणों से हम देख सकते हैं कि आज के दौर में बहन-भाई का रिश्ता भावनात्मक नहीं आर्थिक है।
इन तमाम बातचीत के बाद कह सकते हैं कि जरूरत बहनों की रक्षा की नहीं बल्कि पितृसत्तात्मक मूल्यों को खत्म करने की है। हम रक्षाबंधन के त्यौहार को तभी बेहतर तरीके से मना पाएंगे जब औरतें आर्थिक रूप से आजाद होंगी। मनपसंद कपड़ें पहनने पर कोई घूर कर नहीं देखेगा। जब लड़कियों/औरतों को घर से बाहर निकलते समय घड़ी की सुइयों की ओर न देखना पड़े। जब लड़कियां अपने मनपसंद साथी के बारे में छुपाकर न रखे बल्कि अपने घर के सभी सदस्यों को अपने भाविक जीवन साथी से मिलवाए और घर के सदस्यों की ओर से सकारात्मक रिश्पोंस मिले। और सबसे अहम बात कि लड़कियों/औरतों को एक इंसान समझें। जब हम अपनी सोच को बराबरी की सोच पर ले आएंगे तभी हम एक बेहतर व सुरक्षित समाज का निर्माण कर पाएंगे। और तभी बहन-भाई के पवित्र रिश्तों को अच्छे से समझने में कामयाब होंगे। इन सब परिवर्तनों के बाद जब हम रक्षाबंधन का त्यौहार मना रहे होंगे तो उस समय कलाई पर राखी सिर्फ बहनें ही नहीं भाई भी बांधेंगें। और एक दूसरे की रक्षा करने की कसमें भी खाएंगे तो उसमें किसी को नियंत्रण करने की सोच नहीं होगी। बल्कि एक दूसरे की बिमारी में, पढ़ाई में, दुनिया को अपने नजरिये से देखने में, जीवन साथी व अपने पेशों को चुनने में मदद करने की कसमें होंगी।


4 comments:

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  2. मैं स्त्रियों की समानता और स्वतंत्रता का सम्मान करता हूं किंतु रक्षाबंधन जैसे पावन पवित्र त्यौहार बेवजह ढाल बनाए जाने के आपके विचार का पूर्ण रूप से खंडन करता हूं।
    भाई केवल अन्य लड़कों से बहन की रक्षा नहीं करता अपितु जीवन के हर सुख दुख में बहन के साथ होता है।

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  3. Pathetic viewpoint. You can't generalise a point with an uncommon dataset.

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  4. आपके विचारो से सहमत नही हूँ ।आप कहते हैं लडकी जैसे चाहे कपडे पहने पर कोई घूर कर ना देखे।भाईआप चाहते हैं वह अर्धनग्न घूमे और आप जैसे नारिवादियों को सेक्स के सोफ्ट टारगेट आसानु से मिल जाएं और आप अपनी काम पिपासा आसानी से बुझा सकें।औरत और मर्द में बुनियादी रूप से प्राकृतिक क अंतर है।यदि वह षुरूष जैसा बनने की चेष्टा करेगी तो सारी सामाजिक व्यवस्था चरमरा जाएगी।आपकी वामपंथी सोच सामाजिक व्यवस्था के लिए लाभदायक नही है।

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