(पिछले लंबे समय प्रसिद्ध कवि, राजनीतिक चिंतक और शिक्षक प्रो. वरवर राव गंभीर बिमार हैं, उन्हें तत्काल गहन चिकित्सा की जरूरत है । लेकिन सरकार उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं तो दूर की बात है, कोविड-19 जैसी बिमारी के दौरान भी जमानत तक नहीं दे रही है । ऐसे समय में समस्त जागरूक छात्रों एवं नागरिकों की जिम्मेदारी बनती है कि वो सरकार पर हर तरह से दबाव बनाए ताकि प्रो. वरवर राव को जमानत मिल सके और उनका ईलाज शुरू किया जा सके । ऐसे समय में प्रो. वरवर राव की रिहाई के समर्थन में लिखी गई कविताएं हम पाठकों के साथ सांझा कर रहे हैं । सभी कविताएं फेसबुक से ली गई हैं । - संपादक मंडल, अभियान ।)
1.
प्रो. वरवर राव के लिए
छोड़ दो मेरे महबूब शायर को
क्योंकि तुम्हारे क़ैद करने से
नहीं क़ैद हो सकते उनके शब्द.
उनके एक एक अक्षर, शब्द, वाक्य में
जो विस्फोट है
उसमें ताकत है
एक नए ब्रह्माण्ड के सृजन की.
तुम्हारी तो औकात ही क्या
नहीं क़ैद कर पाए वे
नाज़िम हिकमत, महमूद दरवेश
फ़ैज़ को.
उनके क़ैद करने वाले
हुक्मरानों को आज कोई
जानता भी नहीं.
सिवाय घृणा के
कोई याद नहीं करता उन्हें
कि कैद किया था जिन्होंने
हमारे महबूब शायरों को.
एक एक लफ्ज़ महफूज़ है
उनके हमारी सांसों में.
मरते वक्त
हम सौंप देंगे उन्हें
अपनी बेटियों को
फिर वे अपनी बेटियों को.
इस तरह ज़िंदा रहेंगे वे
जब तलक
ये ज़मीं वजूद में है.
तुम समझते हो
क़ैद करके तुम बच जाओगे
उनके लफ़्ज़ों की आग से.
पता नहीं तुम्हें
जब हमारे पुरखों ने खोजी थी आग
और
लगे हुए थे उस आग को
बचाने की ज़द्दोज़हद में
इतना यकीं था उन्हें कि
सौंप दी थी उन्होंने कुछ चिंगारी
शायर को.
संजो लिया था शायरों ने उसे अपने शब्दों में
अपने ज़ेहन में.
और बची रही आग.
हमारा यह महबूब कवि
उस वक्त भी मौजूद था
सबसे अग्रिम पंक्ति में
इसीलिए तुम डरते हो
कवि से
उसकी कविता से.
नहीं जानते तुम
ये कवि स्वयं में
एक महाकाव्य है
जिसे गाया जाएगा सदियों!
जिसे गाया जाएगा सदियों!!
- अमिता शीरीन
2.
आओ मुझे गिरफ्तार करो
अगर तुम लिखने के जुर्म में
वरवर राव को गिरफ्तार कर सकते हो
तो मुझे क्यों नहीं
मैं भी तो कविताएं लिखता हूँ
आओ मुझे गिरफ्तार करो
लेकिन यह जान लो
तुम भले मुझे गिरफ्तार कर लो
कविताओं को गिरफ्तार नहीं कर पाओगे
कहाँ गिरफ्तार हुईं वरवर राव की कविताएं भी
वे आंधियों के हवाले हैं
वे खुद आंधियां हो चुकी हैं
और बेखौफ अपना काम कर रही हैं
तुम आओ मुझे गिरफ्तार करो
ऐसा क्या है कि तुम
वरवर राव की कविता से तो डरते हो
मेरी कविता से नहीं
क्या मेरी कविता में कुछ कम कविता है
क्या मेरे प्रतिरोध में कुछ कम प्रतिरोध है
कहाँ रह गई कमी मुझमें
मैं भारी बोझ में जी रहा हूँ
मैं इन्हें ठीक करना चाहता हूँ
मैं जीवन से लाऊंगा चुनकर हर जरूरी चीज
भूख
टूटी हुई नींद
अनवरत जागते सपने
उदासी गुस्सा भय अपमान
मैं लाऊंगा सब
अपनी हार
और उम्मीद भी
लेकिन नहीं नहीं
मैं कविता को ही ले जाऊंगा
किताब के पन्नों से निकालकर बाहर
हर पल चोट खाती जिंदगी के बीच
जहाँ हर पल सैलाब उमड़ता रहता है
अगर फासिस्ट यह सोचता है
कि काल कोठरी का ठंडा भय दिखाकर
बर्फ कर देगा वह मेरी कलम की स्याही को
वह भोथरे कर देगा शब्द
कलम के भीतर ही
तो वह गलती में है
यहाँ खून में डुबोकर अंगुलियाँ
कविता लिखने का रिवाज है
यही कहा था फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने
अपने जमाने के फासिस्ट से
ओ मेरे जमाने के फासिस्ट
सुनो
यह उठती करोड़ों आवाजें
ढाह देंगी तुम्हारी जेल की दीवारें
मैं भीतर की आवाज में शामिल होना चाहता हूँ
आओ मुझे गिरफ्तार करो ।
- रणजीत वर्मा
3.
कविता वरवर राव के लिए
सत्ता की संगीनों के बीच है कवि
बाड़े और बेड़ियों से
सिपाहियों ने उसे घेर रखा है
और इस घेरे में भी
वह मुस्कुरा रहा है
चेहरा दमक रहा है
हाथ उठे हैं
मुट्ठियां बंधी हैं
काले बादलों को चीरता सूर्य चमक रहा है
कहते हैं कलम कुछ कर नहीं सकती
उससे कुछ हो नहीं सकता
फिर कलम से
इस कदर क्यों डरती है सत्ता ?
कि कलम का सिर
कलम करती रहती है सत्ता
कवि बड़ा खतरनाक है
वह कविता लिखता है
जीवन के गीत गाता है
क्रान्ति की धुन पर थिरकता है
हां, उनके लिए बड़ा खतरनाक है कवि
और जीवन को खत्म कर देने के
हजार उपक्रम जारी है
पर यह सत्ता है जो काट रही उसी डाल को
जिस पर वह बैठी है
उसे क्या पता है कि
एक आदमी खत्म हो सकता है
जीवन खत्म नहीं हो सकता
एक कवि खत्म हो सकता है
कविता खत्म नहीं हो सकती
लिखा जाना
प्रतिबंधित किया जा सकता है
फिर भी कविता लिखी जाएगी
कागज पर न सही
मन में वह रची जाएगी
जन-जन में पढ़ी जाएगी
गीतों में गूंजेगी
स्वर लहरियों में लहरायेगी
तोड़ भाषा की दीवार वह छा जायेगी!
-कौशल किशोर
(12 जुलाई 2020)
4.
प्रो. वरवर राव के लिए
मैं कभी नहीं मिला वरवर राव से
यह सच नहीं है
मैं हमेशा मिलता रहा उनसे कविताओं में
उनसे, एक लंबी मुलाकात
उनकी जेल डायरी में हुयी
सच में जेल की सलाखें
उन्हें कमजोर नहीं कर सकती
मैं उम्मीद करता हूँ, हमारे प्यारे कवि
जेल की सलाखों से बाहर जरूर आएंगे
यह उम्मीद इस बात पर निर्भर करती है
कि हम जालिम सरकार का
किस तरह और कितना तीखा प्रतिरोध करते हैं ।
- संदीप कुमार
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