Tuesday, 21 July 2020

कविता



रात को रात कहना जरूरी है
(डॉ. रामकुमार 'आत्रेय’)


लोग जो
अंधेरे को अंधेरा और 
रात को रात कहने से डरते हैं
वे स्वाभाविक मौत मरने से पहले
रोज-रोज हजार मौत मरते हैं।

जिंदगी जो
रोज-रोज मरती रही हो और 
फिर भी मौत से डरती रही हो
मौत उसकी
स्वाभाविक हो ही नहीं सकती।

इसीलिए, आज अधिकतर लोग
अस्वाभाविक मौत मर रहे हैं
जैसे पौधों पर खिले फूल
मुरझाने से पहले ही झर रहे हों।

सूरज को सूरज नहीं कहोगे
तो कोई बात नहीं
मगर रात को रात
और अंधेरे को अंधेरा कहना जरूरी है
नहीं तो रोशनी से
जिंदगी का विश्वास उठ जाएगा
एक-दूसरे के बीच बना
आपसी विश्वास का सेतु टूट जाएगा
तब अंधेरा नाचने लगेगा
आस्था के फूलों से दुर्गन्ध आने लगेगी
और मौत हर जगह मंडराने लगेगी । 


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